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भामिनी-विलास स्कार किया। प्राणनारायणके यहाँ भी ये अधिक दिन नहीं रहे और अपना अन्तिम समय इन्होंने मथुरा तथा काशीमें व्यतीत किया । ऐसा प्रतीत होता है कि यौवनमें अपार वैभव-सम्पन्नताका उपभोग करनेवाले पण्डितराज वृद्धावस्थामें उस संपत्तिका अभाव, पत्नी-वियोग और पण्डितों द्वारा तिरस्कारसे ऊबसे गये। अतः अन्तिम जीवन इनका सुखमय नहीं रहा। धार्मिक सिद्धांत
पण्डितराज शांकर वेदान्तके कट्टर अनुयायी हैं। भगवान् श्रीकृष्ण एवं गङ्गाके परमभक्त होते हुए भी ये अन्धे वैष्णव नहीं हैं। दूसरे देवताओंकी स्तुति भी उसी भक्तिके साथ करते हैं, किन्तु कृष्णपर इनकी अत्यधिक आस्था है । यद्यपि इन्होंने भक्तिको पृथक् रस रूपसे स्वीकार नहीं १. शास्त्राण्याकलितानि नित्यविधयः सर्वेऽपि सम्भाविताः दिल्लीवल्लभपाणिपल्लवतले नीतं नवीनं वयः । सम्प्रत्युज्झितवासनं मधुपुरीमध्ये हरिः सेव्यते सर्व पण्डितराजराजितिलकेनाकारि लोकाधिकम् ॥
(शान्त वि० ४५) २. मृद्वीका रसिता सिता समशिता स्फीतं निपीतं पयः
स्वर्यातेन सुधाप्यधायि कतिधा रम्भाधरः खण्डितः । तत्त्वं ब्रूहि मदीय जीव भवता भूयो भवे भ्राम्यता कृष्णेत्यक्षरयोरयं मधुरिमोद्गारः क्वचिल्लक्षितः ।।
(शान्त वि० ) पायं पायमपायहारि जननि स्वादु त्वदीयं पयो नायं नायमनायनीमकृतिनां मूर्ति दृशोः कैशवीम् । स्मारं स्मारमपारपुण्यविभवं कृष्णेतिवर्णद्वयम् चारं चारमितस्ततस्तव तटे मुक्तो भवेयं कदा ॥
( रसगंगाधरमें भावका उदाहरण)
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