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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भामिनीविलासे टीका-मदेन = गर्वेण मदजलेन वा अन्धे = दृष्टिविहीने अक्षिणी = नेत्रे यस्य तत्सम्बुद्धो रे मदान्धेक्षण ! एतेनातिशयाविवेकित्वं सूच्यते । सखे = मित्र ! एतेनोपदेशयोग्यत्वं व्यज्यते । गजश्रेणीनां = हस्तिपंक्तीनां नाथ: स्वामी, तत्सम्बुद्धौ हे गजपते ! इत्यर्थः । इह अस्यां । जटिलायांजटाभिरिव लताभिः परिपूर्णायां । वनभुवि = अरण्यभूमौ । क्षणं = किञ्चित्कालम् । अपि, स्थितिं नो दध्याः = अवस्थानं मा कुरु । यतः । कुम्भिनांगजमस्तकानों भ्रान्त्या = विभ्रमेण । खरैः = तीक्ष्णैः नखरैः कररुहैः विद्राविताः = विदीर्णाः महतां = विशालानां गुरूणां = भारवतां ग्रावाणां = शिलोच्चयानां प्रामाः = समूहाः येन सः, एवंभूतः ( पुनर्भवः कररुहो नखोऽस्त्री नखरोऽस्त्रियाम् इति, अद्रिगोत्रगिरिनावाचलशलशिलोच्चयाः, इति च-अमरः ) असौ = प्रसिद्धः हरिपतिः = मृगेन्द्रः । गिरेः गर्भः तस्मिन् गिरिगर्भ = पर्वतगुहायां । स्वपिति-शेते । भावार्थ -अरे मदान्ध ! मित्र ! गजेन्द्र ! इस जटिल वनभूमिमें एक क्षणके लिये भी न रुकना, क्योंकि गजमस्तक समझकर अपने तीक्ष्ण नखसे जिसने बड़े-बड़े विशालकाय पर्वतशिखरोंको विदीर्ण कर डाला वही मृगेन्द्र इस गिरिगुफामें सोया है। टिप्पणी-किसी प्रकारका खतरा होनेसे पूर्व ही सावधान हो जाना बुद्धिमान्का लक्षण है। ऐसे सामर्थ्यशालीके समीप, जोकि किंचिन्मात्र भी दूसरेका उत्कर्ष सहन नहीं कर सकता, मदोन्मत्त होकर रहना अपने जीवनको स्वयं ही खतरेमें डालना है। इसी भावको इस अन्योक्ति द्वारा व्यक्त किया है। जो मृगेन्द्र गजमस्तक समझकर पर्वतशिखरोंको भी अपने तीक्ष्ण नखोंसे विदीर्ण कर डालता है वही भला, वास्तविक गजकी उपस्थिति को एक क्षणके लिये भी कैसे सहन करेगा। 'मदान्धेक्षण' यह विशेषण स्थूलकाय गजेन्द्रकी विवेकशून्यताको सूचित करता है। जब सिंह जग जायगा तो तुम विशालकाय होनेसे भाग भी न सकोगे, लता For Private and Personal Use Only
SR No.020113
Book TitleBhamini Vilas ka Prastavik Anyokti Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagannath Pandit, Janardan Shastri Pandey
PublisherVishvavidyalay Prakashan
Publication Year1968
Total Pages218
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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