________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
व्याख्या
प्रचतिः
॥११३१॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
वर्तता नथी. जघन्यथी एक, बे के ऋण अने उत्कृष्टथी संख्याता अचक्षुदर्शनी उद्वर्त छे. ए प्रमाणे यावत् लोभकषायी जीवो सुधी जाणं. श्रोत्रेन्द्रियना उपयोगवाळा उद्वर्तता नथी. ए प्रमाणे यावत्-स्पर्शनेन्द्रियना उपयोगबाळा पण उद्वर्तता नथी. जघन्यथी एक, वे के त्रण अने उत्कृष्टथकी संख्याता नोइंन्द्रियना उपयोगवाळा उद्वर्ते छे. मनयोगी उद्वर्तता नथी. ए प्रमाणे वचनयोगी पण उद्वर्तता नथी. काययोगी जघन्यथी एक, वे के ऋण अने उत्कृष्टथी संख्याता उद्वर्ते छे. ए प्रमाणे साकारोपयोगवाळा अने अनाकारोपयोगवाळा पण जाणवा. (ए प्रमाणे नारक जीवोने विषे उद्वर्तनानुं परिमाण कं.)
इमीसें णं भंते! रयणप्पभाए पुढबीए तीसाए निरयावास सयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु नरएस केवइया नेरइया पत्ता? केवइया काउलेस्सा जाब केवतिया अणागारोवउत्ता पत्ता? केवतिया अणतरोववनगा पत्ता ११ केवइया परंपरोववन्नगा पन्नत्ता २ ? केवइया अगंतरोगाढा पन्नत्ता ३ ? केवढ्या परंपरोगाढा प० ४ १ केवइया अणतराहारा पं० ५१ केवतिया परंपराहारा पं० ६ ? केवतिया अणंतरपज्जत्ता प० ७१ केवतिया परंपरपज्जत्ता पन्नत्ता ८१ केवतिया चरिमा प० ९ १ केवतिया अचरिमा पं० १०१, गोयमा ! इमीसे रयणप्पभाए पुढबीए तीसाए निरयावास सय सहस्सेसु संखेज वित्थडेसु नरएसु संखेज्जा नेरतिया १० संखेज्जा काउलेसा प० एवं जाब संखेज्जा सन्नी प०, असन्नी लिय अत्थि सिय नत्थि, जइ अस्थि जहन्त्रेण एक्को वा दो वा तिन्नि वा उक्कोण संखेजा प०, संखेजा भवसिद्धीया प० एवं जाव संखेला परिग्गहसन्नोवउत्ता प० इत्थिवेदगा नत्थि, पुरिसवेदगा नत्थि, संखेज्जा नपुंसगवेदगा पर, एवं कोहकसायीवि माणकमाई जहा असन्नी, एवं जाव लोभक०, संखेज्जा सोई
For Private And Personal
१३ शतके
उद्देशः १ ॥११३१॥