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वरके उद्देशान
केवइया नेरइया उववति ? केवतिया काउलेस्सा उववदंति ? जाव केवतिया अणागारोवउत्ता उव्वदृति !, गोव्याख्या
यमा! इमीसे ण रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेजवित्थडेसु नरएसु एगसमएणं जह- प्रज्ञाप्तिः
नेणं एको वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेण संखेजा नेरइया उववहृति, एवं जाव सन्नो, असनी ण उव्वदंति, जहन्ने ॥११३०॥
Pएको वा दो वा तिमि वा उक्कोसेणं संखेजा भवसिद्धीया उव्वदृति एवं जाव लयअन्नाणी, विभंगनाणी ण उवव६ इंति, चक्खुदसणी ण उयवदंति, जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेणं संखेज्जा अचक्खुदसणी उबटुंति,
एवं जाव लोभकसायी, सोइंदियउवउत्ता ण उब्वदृति एवं जाव फासिदियोवउत्ता न उव्वदंति, जहन्नणं एको वा दो वा तिनि वा उक्कोसेणं संखेजा नोइंदियोवउत्ता उव्वदंति, मणजोगी न उच्चदंति एवं बइजोगीवि, जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेणं संखेजा कायजोगी उव्वदृति एवं मागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता।
प्र०] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभापृथिवीना त्रीश लाख नरकावासोमांना संख्यातायोजन विस्तारवाळा नरकावासोने विषे एक समयमां केटला नारक जीवो उद्वर्ते-मरण पामे, केटला कापोतलेश्यावाला उद्वत, यावत्-केटला अनाकारोपयोगवाळा उद्वर्ते ? (उ०] हे गौतम ! आ रत्नप्रभा पृथिवीना त्रीश लाख नरकावासोमांना संख्याता योजन विस्तारवाळा नरकावासोमां एक समये जघन्यथी एक, बे के त्रण अने उत्कृष्टथी संख्याता नारको उद्वर्ते, जघन्यथी एक, बे के त्रण अने उत्कृष्टथी संख्याता कापोतलेश्यावाळा उद्वर्ते, ए प्रमाणे यावत्-संज्ञी जीवो सुधी उद्वर्तना जाणवी. असंज्ञी जीवो उद्वर्तता नथी. भवसिद्धिक जीवो जघन्यथी एक, बे के त्रण अने उत्कृष्टथी संख्याता उद्वर्ते छे. ए प्रमाणे-यावत् श्रुतअज्ञानी सुधी जाणवं. विभगज्ञानी अने चक्षुदर्शनी उद
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