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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१११५॥
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उभयना आदेशथी-स्व अने परनी विवक्षाथी आत्मा सद्रूपे अने नोआत्मा-असद्रूपे अवक्तव्य छे. ते हेतुथी पूर्व प्रमाणे कछु छे तेम आत्मा-सद् अने यावद् नोआत्मा-असद्रूपे अवक्तव्य हे. [प्र०] हे भगवन् ! शर्कराप्रभा पृथ्वी आत्मा - सद्रूप छे ? - इत्यादि प्रश्न. [30] जेम रत्नप्रभा पृथ्वी कही तेम शर्कराप्रभा पृथ्वी संबंधे पण जाणवुं. ए प्रमाणे यावद्-अधःसप्तम पृथ्वी सुधी जाणवुं. [प्र०] हे भगवन् ! सौधर्म देवलोक आत्मा-सद्रूप छे १ - इत्यादि प्रश्न. ( उ०] हे गौतम! सौधर्म कल्प १ कथंचित् आत्मा सद्रूप छे, २ कथंचिद् नोआत्मा-असद्रूप छे, यावद्-आत्मा-सद् अने नोआत्मा-असद्रूपे कथंचिद् अवक्तव्य छे, [प्र० ] हे भगवन् ! एप्रमाणे शाहेतुथी कहो छो के, 'ते यवद्-आत्मा अने नोआत्मारूपे अवक्तव्य ले १ [अ०] हे गौतम! पोताना आदेशथी आत्माविद्यमान छे, परना आदेशथी नोआत्मा- अविद्यमान् छे, अने बनेना आदेशथी अवक्तव्य आत्मा तथा नोआत्मा रूपे अवाच्य छे, माटे ते हेतुथी इत्यादि पूर्वोक्त यावद्-आत्मा तथा नोआत्मा रूपे अवक्तव्य के. ए रीते यावद्-अच्युतकल्प पण जाणवी.
आया भंते! गेविजविमाणे अने गेविज विमाणे एवं जहा रयणध्वभा तहेब, एवं अणुत्तर विमाणावि, एवं | ईसिप भारावि । आया भंते! परमाणुपोग्गले अन्ने परमाणुपोग्गले १ एवं जहा सोहम्मे कप्पे नहा परमाणुपोग्गलेबि भाणिवे ॥ आया भंते ! दुपए लिए खंधे अन्न दुपएसिए खंधे ?, गोयमा । दुपएसिए खंधे सिय आया १ सिय | नो आया २ सिय अवत्तव्यं आयाह य नो आयातिय ३ सिय आया य नो आया य ४ सिय आया य अवक्तव्वं आयाति य नो आयाति य ५ सिप नो आया य अवत्तव्यं आयाति य नो आयाति य ६, से केणट्टेणं भंते । एवं तं चैव जाव नो आयाति य अवत्तव्यं आयाति य नो आयाति य गोषमा ! अप्पणो आदिट्ठे आया २ परस्स
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१२ सके उद्देशः १० ।।१११५॥