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व्याख्या- दर्शनरूप के, अने तेओनें दर्शन पण अवश्य आत्मा छे. ए प्रमाणे यावद्-वैमानीको मुधी निरंतर (चोवीस) दंडक कहेवा.॥४६८॥ प्रज्ञप्तिः
१२शतके आया भंते ! रयणप्पभापु० अन्ना रयणप्पभा पुढवी?, गोयमा! रयणप्पभा पुढची सिय आया सिय नो ॥१११४॥
उद्देशा१० आया सिय अत्तव्वं आयाति य नो आयाइ य, से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चह रयणप्पभा पुढवी सिय आया सिय १११४॥ नो आया सिय अवत्तव्यं आतातिय नो आतातिय?, गोयमा ! अप्पणो आदिढे आया परस्स आदिढे नो आया | तदुभयस्स आदिट्टे अवत्तव्वं रयणप्पभा पुढयी आयातिय नो आयाति य, से तेणढणं तं चेव जाव नो आयातिय । आया भंते ! सकरप्पभा पुढवी जहा रयणप्पभा पुढवी तहा सक्करप्पभाएवि, एवं जाव अहे सत्तमा। आया भंते ! सोहम्मे कप्पे पुच्छा, गोयमा ! सोहम्मे कप्पे सिय आया सिय नो आया जाच नो आयाति य, से केणतुणं भंते ! जाव नो आयातिय १, गोयमा! अप्पणो आइटे आया परस्म आइढे नो आया तदुभयस्स आइडे अवत्तव्यं आताति य नो आताति य, से तेण?णं तं चेव जाव नो आयाति य, एवं जाव अच्चुए कप्पे ।
[प्र०] हे भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी आत्मा-सत्स्वरूप के के अन्य-असत्स्वरूप रत्नप्रभा पृथिवी में ? [उ.] हे गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी १ कथंचित् आत्मा-सद्रूप से,२ कथंचित् नोआत्म-असद्रूप पण छे, अने ३ सद्रूपे अने असद्पे (उभयथा) कथंचित अवक्तव्य-कहेवाने अशक्य छे. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के, रत्नप्रभा पृथिवी कथंचिद् आत्मा-सप
छ, कथंचित् नोआत्मा-असद्प छे, अने सद् अने असद्-ए उभयरूपे कथंचिद् अबक्तव्य छ १ [उ.] हे गौतम ! रत्नप्रभा IPI पृथिवी पोताना आदेशथी-स्वरूपथी आत्मा-विद्यमान छे, परना आदेशथी-पररूपे विवक्षाथी नोआत्मा-अविद्यमान छे, अने 31
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