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CRUS
131१२शतके
प्रज्ञप्ति ॥१११३॥
भंते ! नेरइयाणं नाणे अन्ने नेरइयाण नाणे?, गोयमा! आया नेरइयाणं सिय नाणे सिय अन्नाणे, नाणे पुण से नियम आया, एवं जाव थणियकुमाराणं, आया भंते ! पुढवि० अन्नाणे अन्ने पुढविकाइयाणं अन्नाणे?, गोयमा!
उद्देशः१. आया पुढविकाइयाण नियम अन्नाणे अन्नाणेवि नियम आया, एवं जाव वणस्सइका०, बेइंदियतेइंदिय जाव 13.१११३॥ वेमाणियाणं जहा नेरहयाण | आया भंते ! दसणे अन्ने दमणे?, गोयमा! आया नियम दमणे दमणेऽवि नियम आया। आया भंते ! नेर० सणे अन्ने नेरइयाणं दंसणे?, गोयमा! आया नेरइयाणं नियमा दमणे दंसणेवि से नियमं आया एवं जाव वेमा. निरंतरं दंडओ।। ( सूत्रं ४६८)।। | [म०] हे भगवन् ! आत्मा ज्ञानस्वरूप छे के अज्ञानस्वरूप छे ? [उ०] हे गौतम ! आत्मा कदाचित् ज्ञानस्वरूप बे, अने कदाचित् अज्ञानस्वरूप छे. पण ज्ञान तो अवश्य आत्मस्वरूप के. [प्र.] हे भगवन् ! नैरयिकोनो आत्मा ज्ञानरूप छे. के अज्ञानरूप छे ? [उ०] हे गौतम ! नैरयिकोनो आत्मा कदाचिद् ज्ञानरूप में, अने कदाचिद् अज्ञानरूप पण छे. परन्तु तेओनुं ज्ञान अवश्य आत्मरूप छे. ए प्रमाणे यावत्-स्तनितकुमारो सुधी जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! पृथ्वीकायिकोनो आत्मा ज्ञानरूप ने के अज्ञानरूप छ? [उ०] हे गौतम! पृथ्वीकायिकोनो आत्मा अवश्य अज्ञानरूप छे. अने तेओर्नु अज्ञान पण अवश्य आत्मरूप . ए प्रमाणे यावद्-वनस्प-k तिकायिको सुधी जाणवू. बेइन्द्रिय, त्रीन्द्रिय अने यावद्-वैमानिकोने नैरयिकोनी पेठे (सू०८) जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! आत्मा
दर्शनरूप के के तेथी दर्शन बीजु छ ? [उ०] हे गौतम ! आत्मा अवश्य दर्शनरूप में अने दर्शन पण अवश्य आत्मा छे. [प्र.] हे है भगवन् ! नैरयिकोनो आत्मा दर्शनरूप के ? के नैरयिकोनुं दर्शन तेथी अन्य छे ? [उ.] हे गौतम ! नेररिकोनो आत्मा अवश्य
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