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Shri Mahavir Jain Arthur Hendra
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१७ शतके
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Acharya Shrir agarsuri Gyanmandir Pा पछी उत्पम थाय छे, ज्यारे सर्वयी समुद्घात करे छे त्यारे प्रथम उत्पन्न थाय छे अने पछी पुद्गल ग्रहण करे छे. ते कारणथी। व्याख्या
18 यावत-पछीथी उत्पन थाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! पृथिवीकायिक जीव आ रनप्रभा पृथिवीमां यावत्-मरणसमुद्घात करी जे प्रज्ञप्तिः
उद्देशः६ ईशानकल्पमां पृथिवीकायिकपणे उत्पन्न थवाने योग्य छ -इत्यादि पृच्छा. [उ०] पूर्व प्रमाणे ईशानकल्पसंचन्थे जाग. एम पावत्॥१४४०॥
L ॥१४४०।अच्युत, वेयक विमान, अनुत्तर विमान अने ईषत्प्राग्भारा पृथिवी संबन्धे पण जण. [प्र०] हे भगवन् ! जे पृथिवीकायिक जीव
आ शराप्रभा पृथिवीमां मरण समुद्घात करीने सौधर्भकल्पमां पृथिवीकायिकपणे उत्पन्न थवाने योग्य छे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] | जेम रत्नप्रभा पृथिवीना पृथिवीकायिकनो उत्पाद कह्यो छे तेम शर्कराप्रभाना पृथिवीकायिकनो उत्पाद कहेवो. यावत्-ए प्रमाणे ईष
साम्भारा पृथिवी सुधी जाणवं, तथा जेम रत्नप्रभाना पृथिवीकायिकनी वक्तव्यमा कही तेम यावत्-सातमी नरक पृथिवी मुधीमां मरणसमुद्घातथी समवहत थयेला जीवनो ईषत्प्राग्भारामा उपपात कहेवो. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे.' ६०५ भगवद सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना १७ मा शतकमा छट्ठा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
शतक १७. (उद्देशक ७) पुढविकाइए ण भंते ! सोहम्मे कप्पे समोहए समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुढ Kधीकाइयत्ताए उवववजिराए से णं भंते ! किं पुब्बि सेसं तं चेव जहा रयणप्पभापुढ विकाइए सब्वकप्पेसु जाव का ईसिपम्भाराए ताव उववाइओ एवं सोहम्मपृढ विकाइओवि सत्तसुवि पुढवीसु उववाएयचो जाव अहेसत्तमाए, 181
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