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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः ॥-१४४१ ॥
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एवं जहा सोहम्मपुढ विकाइओ सव्यपुढवी उबबाइओ एवं जाव ईसिप भारापुढविकाइओ सम्बपुढवी उबवाएयवो जाव आहेसत्तमाए, सेवं भंते । २ ।। (सूत्रं ६०६) ।। १७-७ ॥
[प्र० ] हे भगवन् ! जे पृथिवीकायिक जीव सौधर्मकल्पमां मरणसमुद्घात करी आ स्वप्रमा पृथिवीमां पृथिवीकायिकपणे उत्पन्न थवाने योग्य छे ते हे भगवन् ! प्रथम उत्पन्न थाय अने पछी आहार करे-इत्यादि प्रश्न. [उ०] जेम रत्नप्रभा पृथिवीना पृथिकायिक जीवनो वथा कल्पोमां यावत्-ईषत्प्राग्भारा पृथिवीमां उपपात कहेवामां आव्यो के तेम सौधर्मकल्पना पृथिवीकायिक जीवनो पण साते नरकपृथिवीमां यावत् सप्तम नरक सुधी उपपात कद्देवो. तथा जेम सौधर्मकल्पना पृथिवीकायिक जीवनो सर्व पृथिवीओमां उपपात को तेम बघा स्वर्गों, यात्रत्-ईषत्प्राग्भारा पृथिवीमां पृथिवीकायिक जीवनो पण सर्व पृथिवीओमां यावत्सामी नरकपृथिवी उपपात कहेवो. 'हे भगवन् ! ते एमज के, हे भगवन् ! ते एमज छे.' ।। ६०६ ॥
भगवत् धर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रमा १७ मा शतकमां सातमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण धयो.
शतक १७. (उद्देशक ८ . )
आउकाइए णं भंते ! इमीले रगणनभाए पुढबीए समोह० २ जे भविए सोहम्मे कप्पे आउकाइयताएं उब वजितए एवं जहा पुढविकाइओ तहा आउकाइओवि सव्वकप्पेसु नाव ईसिप माराए तहेब उबवायच्वो एवं जहा रयणप्पा आउकाइओ उबवाइओ तहा जाब आहेसन्तमापुढ बि आउकाइओ उपषाएयब्यो जाव ईसिप भा
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११७ शतके उद्देशः७ ॥२४४२॥