________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
॥१३.0
पञ्चायाति, सें णं तस्थ नवण्हं मासाणं बहुपडिपुत्राणं अट्ठमाण जाव बीतिकंताणं सुकुमालगभलए मिउकुं. प्रति
डलकुंचियकेसए मढगंडतलकनपीढए देवकुमारसप्पभए दारए पयायति, सेणं अहं कासवा, तेणं अहं उसो! ॥१३०टकासवा! कोमारियाए पब्बजाए कोमारएणं बंभचेरवासेणं अविद्धकन्नए चेव संखाणं पडिलभामि स.२ इमे सत्त
पउद्दपरिहारे परिहरामि,
त्यांची च्यवीने तुरत हेठेना मानसोत्तर आयुषरहित संयुथ-देवनिकायमा उपजे छे. ६. त्या दिव्य मोगोने भोगवी यावत्च्यवी छट्ठा संत्री गर्भज मनुष्योमा उपजे छे. ६. त्यांची नीकळी तुरत ब्रह्मलोक नामे कल्प देवलोक कयो छे, ते पूर्व तथा पश्चिम लांगो छ, अने उत्तर तथा दक्षिण विस्तारवाळो छे, जेम प्रज्ञापना सूत्रना स्थानपदने विषे का छे तेम अहिं जाणवू, यावत्-तेमां पांच अवतंसक विमानो कला छे, ते आ प्रमाणे-१ अशोकावतंसक, यावत्-प्रतिरूप-सुन्दर छे ते देवलोकमा उत्पन्न थाय छे. ७. त्यां दश सागरोपम सुधी दिव्य भोगो मोगवीने यावत्-त्यांथी च्यवीने सातमा संज्ञीगर्म-गर्भज मनुष्यमां उपजे छे. ७. त्यां। नव मास बरोबर पूर्ण थया पछी अने साडासात दिवस व्यतीत थया बाद सुकुमाल, भद्र, मृदु अने दर्भना कुंडलनी पेठे संकुचित केशवाळो, कर्णना आभूषणवडे जेना गालने स्पर्श थयो छे एचो, देव कुमारसमानकान्तिवाळो वाळक जन्म्यो; हे काश्यप ! ते हुँ दु, त्यारपछी हे आयुष्मन् काश्यप । कुमारावस्थामा प्रव्रज्यावडे कुमारावस्थामांब्रह्मचर्यवडे अविद्धकर्ण-व्युत्पन्न बुद्धिवाळा एवा मने | प्रव्रज्या ग्रहण करवानी बुद्धि थई अने सात प्रात्त परिहार-शरीरान्तरने विषे संचार कयों.
संजहा-एणेजगस्स मल्लरामस्स मंडियस्स रोहस्स भारहाइस्स अज्जुणगस्स गोयमपुत्तस्स गोसालस मंख
ARENESABASE
For Private And Personal