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व्याख्याप्रति ॥१३०५ ॥
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लिपुत्तस्स, तत्थ णं जे से पढमे पट्टपरिहारे से णं रायगिहस्स नगरस्स बहिया मंडियच्छिसि चेहयंसि उदाइस्स कुंडियायणस्स सरीरं विष्पजहामि उदा० २ एणेज्जगस्स सरीरगं अणुप्पविसामि एणे० २ बावीसं वासाइं पढमं परिहारं परिहरामि, तत्थ णं जे से दोचे पउट्टपरिहारे से णं उद्दंडपुरस्स नगरस्स वहिया चंदोपरणंसि बेइयंसि एणेजगस्स सरीरगं विप्पजहामि २ ता मल्लरामस्स सरीरगं अणुप्पविसामि मल्ल० २ एकवीस बासाई दोघं पउठ्ठपरिवारं परिहरामि, तत्थ णं जे से तचे पउहपरिहारे से णं चंपाए नगरीए बहिया अंगमंदिरंभि चेहयंसि मल्लरामस्स सरीरगं विष्पजहामि मल्ल • मंडियस्स सरीरंगं अणुष्पविसामि मंडि० २ वीसं वासाहं तवं पपरिहारं परिहरामि, तत्थ णं जे से चउत्थे पडट्टपरिहारे से णं वाणारसीए नगरीए बहिया काममहावणंसि चेहयंसि मंडियस सरीरंगं विप्पजहामि मंडि० २ रोहस्स सरीरगं अणुष्पविसामि, रोह० २ एकूणवीसं वासाइ य उत्थं पट्टपरिहारं परिहरामि तत्थ णं जे से पंचमे पउट्टपरिहारे से णं आलभियाए नगरीए बहिया पत्त| कालगसि चेहसि रोहस्स सरीरगं विप्पजहामि रोह० २ भारद्दाइस्स सरीरगं अणुष्पविसामि भा० २ अट्ठारस वासाई पंचमं पउपरिहारं परिहरामि,
आ प्रमाणे- १ ऐणेयक, २ महराम, ३ मंडिक, ४ रोह, ५ भारद्वाज, ६ गौतमपुत्र अर्जुन अने ७ मंखलिपुत्र गोशालकना शरीरमां प्रवेश कर्यो. तेमांचे प्रथम प्रवृचपरिहार- शरीरान्तर प्रवेशमां राजगृहनगरनी बहार मंडिकुक्षिनामे चैत्यने विषे इंडियायन गोत्रीय उदायनना शरीरनो स्थान करी ऐमेयकना शरीरमां प्रवेश कर्यो, प्रवेश करी बाबीश वर्ष सुधी प्रथम शरीरान्तरमां परार्वतन
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१५ फे उद्देशः १
।।१३०५