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प्रज्ञप्ति ॥१२३२॥
४ गोयमा ताहे व ण [ग्रंथानम् ९.००] से सके देविंदे देवराया एग मह नेमिपडिरूवर्ग विउन्वति एग जोपण-IPI मयसहस्स आयामविवभेणं तिन्नि जोयणसयसहस्सं जाव अद्धंगुलं च किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं, तस्स
लायके
HIोडा णं नेमिपडिरूवस्म उपरि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते जाव मणीणं फासे, तस्स ण नेमिपडिरूवगस्स बहु
॥१३॥ मज्झदेमभागे तत्थ ण महं एग पासायवडेंसगं विउवति पंच जोयणमयाई उड्डे उच्चत्तणं अड्डाइजाई जोयणसयाई विकाभेणं अन्भुग्गयमूसियवन्नओ जाव पडिरूवं, तस्स ण पासायडिंसगस्स उल्लोए पउमलयभत्तिचित्ते जाव पडिरूवे, तस्स पासायबडेंसगस्स अंतो बहुसमरमणिले भूमिभागे जाव मणीणं फासो, मणिपेढिया अट्ठजोयणिया जहा वेमाणियाणं, तीसे णं मणिपेढियाए उवरिं महं एगं देवसयणिज्नं विउच्चइ, सणिजवाओ जाव पडिरूवे, तस्थ ण से सके देविंदे देवराया अहहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं दोहि य अणीएहिं नहाणीएण य गंघव्वाणीपण यमद्धिं महयाहयनजाव दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरइ ।।
[म.] हे भगवन् ! देवोनो इन्द्र अने देवोनो राजा शक ज्यारे भोगवचा योग्य दिव्य (मनोज्ञ स्पर्शादिक) भोगोने भोगववाने 81 इच्छे त्यारे ने तेने ते वखते केवी रीते भोगवे ? [उ०] हे गौतम ! त्यारे ते देवोनो इन्द्र अने देवोनो राजा शक्र एक मोटुं चक्रना द जेनु (वृत्ताकार) स्थान विकुर्वे छे, तेनी लंबाइ अने पहोळह एक लाख योजननी अने तेनी परिधि त्रण लाख (मोळ हजार बसो स
त्यावीश योजन त्रण क्रोश, एकसो अठ्यावीश धनुष अने कंडक अधिक साहातेर) आंगुल छे. ते चक्रना आकारवाग स्थाननी उपर बरोबर सम अने रमणीय भूमिभाग कहेलो छे. (तेनुं वर्णन) यावत्-'मनोज्ञ स्पर्श होय जे त्यां सुधी जाण. ते चक्राकारवाळा ते
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