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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१२३१ ॥
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मना) पुलो ए तेनी नरकमां स्थितिनुं कारण छे, तथा ते (बन्धद्वारा ) कर्मने प्राप्त थयेला हे, ते नारकपणानुं निमित्तभूतकर्मवाळा छे, कर्मपुद्गलथी तेओनी स्थिति छे, अने कर्मने ली अन्य पर्यायने प्राप्त थाय छे. ए प्रमाणे यावद्-वैमानिको सुधी जाणवुं ॥५१८ ॥ नेरइया णं भंते! किं वीथीदब्वाई आहारेंति अवीचिदग्बाई आहारेंति ?, गोयमा ! नेरतिया वीचिदव्वाइंपि आहारेंति अवीचिदव्वाइंपि आहारेंति से केणद्वेणं भंते ! एवं वुबह नेरतिया वीचि० तं चैव जाव आहारेंति ?, गोमा ! जेणं नेरइया एगपएसूणाईपि दवाई आहारेंति ते णं नेरतिया वीचिदव्वाइं आहारेंति, जे णं नेरतिया पडिपुन्नाई दबाई आहारेंति, ते णं नेरइया अवीचिदबाई आहारेंति से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ जान आहारेति, एवं जाव बेमाणिया आहारेंति । ( सूत्र ५१९ ) ।।
[प्र०] हे भगवन् ! नारको वीचिद्रव्योनो आहार करे छे के अवीचि द्रव्योनो आहार करे छे ? [उ० ] हे गौतम नारको वीचिद्रव्योनो पण आहार करे छे अने अवीचिद्रव्योनो पण आहार करे छे, [प्र० ] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के, 'नारको वीचिद्रव्यो अने अवीचिद्रव्योनो पण आहार करे के' ? [उ० हे गौतम! जे नारको एक प्रदेश पण न्यून द्रव्योनो आहार करे क्रे तेओ वीचिद्रव्योनो आहार करे छे, अने जे नैरथिको परिपूर्ण द्रव्योनो आहार करे के तेओ अवीचि द्रव्योनो आहार करे छे, ते हेतुर्थी हे गौतम! एम कझुं छे के, 'नारको वीचि तथा अवीचि ए बने प्रकारना द्रव्योनो आहार करे छे.' ए प्रमाणे यावद्- 'वैमानिको आहार करे छे' त्यां सुधी जाणवुं ॥ ५१९ ॥
जाहे णं भंते! सक्के देविंदे देवराया दिव्वाई भोगभागाई भुंजिउंकामे भवति से कहमियाणि पकरेति १,
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१४ शतके
उद्देशः ३ ॥१२३१४