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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्राप्ति ॥१२३३॥ १४शतके उद्देशा १२३३॥ स्थाननी बरोबर मध्यभागे एक मोटो प्रासादावतंसक-भूषणरूप सुन्दर प्रासाद विकुर्वे के. ते उचाइमां पांचसे योनन उंचो अने तेनो विष्कंभ-विस्तार अढीसो योजननो छ, ते प्रासाद अभ्युद्गत-अत्यन्त उंचो (अने प्रभाना पुंजवडे व्याप्त होवाथी जाणे हसतो | होयनी!) इत्यादि प्रासादवर्णन जाणवू, यावत्-ते प्रतिरूप-सुंदर अने दर्शनीय से. तथा ते प्रासादावतंसकनो उल्लोच-उपरनो भाग पद अने लताओना चित्रामणथी विचित्र अने यावद्-दर्शनीय छे. वळी ते प्रासादावतंसकनो अंदरनो भाग बराबर सम अने रमणीय के, यावद 'त्यां मणिओनो स्पर्श होय ' त्यांसुधी वर्णन जाणवं. बळी त्या आठ योजन उंची एक मणिपीठिका छे, अने ते चैमानिकोनी मणिपीठिका जेवी जाणवी. ते मणिपीठिकानी उपर एक मोटी देवशय्या विकुर्वे छे, ते देवशय्यानुं वर्णन यावत्टू'प्रतिरूप' छे त्यांमुधी कहेवू, त्यां देवनो इन्द्र अने देवनो राजा शक्र पोतपोताना परिवारयुक्त आठ पट्टराणीओ साथे गन्धर्वानीक अने नाव्यानीक ए वे प्रकारना अनीकनी साधे मोटेथी आहत-चगाडेला नाट्य, गीत अने वादिनना शब्दवडे यावत्-भोगवटा योग्य | दिव्य भोगोने भोगवतो विहरे छे. जाहे ईसाणे देविदे देवराया दिवाई जहा सके तहा ईसाणेवि निरवसेसं, एवं मणकुमारेवि नवरं, पासाय. वडेंसओ छ जोयणसयाई उड्डे उच्चत्तेणं तिन्नि जोयणसयाई विवभेणं, मणिपेढिया तहेच अट्ठजोयणिया, तीसे णमणिपेदियाए उवरि एस्थ णं महेगं सीहासणं विउवह सपरिवारं भाणियब्वं, तत्थ णं सणकुमारे देविंदे देवराया बावत्तरीए सामाणियसाहस्सीहिं जाव चउहिं बावत्तरीहिं आयरकावदेवसाहस्सीहि य बहहिंसणं कुमारकप्पवासीहिं बेमाणिएहिं देवेहि य देवीहि य मद्धिं संपरिबुडे महया जाब विहरइ । एवं जहा सर्णकुमारे तहा %AAAAAA For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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