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बाख्या-1 प्राप्ति
॥१२२४॥
उमेश १२२४॥
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सिय अचरिमे, कालादेसेणं सिय चरिमे सिय अचरिमे, भाबादेसेणं सिय चरिमे सिय अचरिमे (सूत्रं ५१३)।
[प्र.] हे भगवन् ! शुं परमाणुपुत्गल चरम ले के अचरम छ। [उ.] हे गौतम ! (परमाणुपुद्गल) द्रव्यनी अंपेक्षाए चरम नथी, पण अचरम ले. क्षेत्रादेशथी कदाचित् चरम के अने कदाचित अचरम ने. कालादेशथी कदाचित् चरम के अने कदाचित् अचरम छे. भावादेशी कथंचित् चरम अने कथंचित् अचरम छे. ॥ ५१३ ॥
काविहे णं भंते । परिणामे पण्णत्ते ?, गोयमा ! दुविहे परिणामे पण्णत्ते, तंजहा-जीवपरिणामे य अजीवपरिणामे य, एवं परिणामपयं निरवसेसं भाणियब्वं । सेवं भंते ! २ जाव विहरति (सूत्र ५१४)॥१४-४॥
[म.] हे भगवन् ! परिणाम केटला प्रकारनो कयो के ? [उ०] हे गौतम ! परिणाम चे प्रकारनो कझो के, ते आ प्रमाणेजीवपरिणाम अने अजीवपरिणाम. ए प्रमाणे अहिं (प्रज्ञापना सूत्रनु) परिणामपद संपूर्ण कहे. हे भगवन् ! ते एमज , हे भगवन्। ते एमद -एम कही (भगवान गौतम) यावर विहरे छे. ॥५१४ ॥
भगवत सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीस्त्रना १४ मा शतकमां चोथा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण वयो.
उद्देशक ५. नेरइए णं भंते ! अगणिकायस्स मज्झमजझेणं वीइवाजा ?, गोयमा! अत्थेगतिए वीइदएज्जा अस्थेगतिए नो वीइवएना, से केणद्वेणं भंते । एवं वुबह अत्थेगइए वीइवाजा अत्थेगतिए नो वीइवएजा!, गोयमा! नेरइया |
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