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व्याख्या प्राप्ति ॥१२२५॥
१४शतके उदेशा५ ॥९२२५०
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दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-विग्गहगतिममावनगा य अविग्गहमतिसमावनगा य, तत्थ जे से विग्गहगतिसमावन्नए नेरतिए से गं अगणिकायस्स मज्झमझेणं बीइवएना से ण तत्थ झियाएजा, णो तिणडे समढे, नो
खलु तस्थ मत्थं कमह, तत्थ णं जे से अविग्गहगइसमावन्नए नेरहए से णं अगणिकायस्स मज्झमझेणं णो वी| इवएज्जा, से तेणद्वेणं जाव नो वीइवएज्जा ।। असुरकुमारे ण भंते ! अगणिकायस्स पुच्छा, गोयमा! अत्थेगतिए |वीडवएज्जा अत्थेगतिए नो वीहवएज्जा, से केणट्टेणं जाव नो वीइवएजा, गोयमा! असुरकुमारा दुविहा पण्णत्ता,
जहा-विग्गहगइसमावनगा य अविग्गहगहसमावनगा य, तस्थ णं जे से बिग्गहगहसमावन्नए असुरकुमारे से गं एवं जहेव नेरतिए जाव वक्कमति, तस्य णं जे से अविग्गहगइसमावन्नए असुरकुमारे से णं अत्थेगतिए अगणिकायस्स मज्झमज्झेणं बीतीयएजा अत्यंगतिए नो बीइव०, जेणं वितीवएज्जा से गं सत्य झियाएज्जा ?, नो तिणढे समढे, नो खलु तस्थ सत्थं कमति, से तेणटेणं एवं जाच धणियकुमारे, एगिंदिया जहा नेरदया। बेइंदिया णं भंते ! अगणिकायस्स मज्झमझेणं जहा असुरकुमारे तहा बेइंदिएवि, नवरं जे णं वीइवएज्जा से णं तत्थ झियाएजा?, हंता झियाएजा, सेणं तं चेव एवं जाव चाउरिदिए।
[प्र.] हे भगवन् ! नारक अनिकायना मध्यभागमां थईने जाय! [उ०] हे मौतम ! कोई एक नारक जाय अने कोई एक नारक न जाय. [प्र.] ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो हो के, 'कोई एक नारक जाय अने कोइ एक नरक न जय' १ [उ.] हे गौतम ! नरयिको वे प्रकारना कहा, ते आ प्रमाणे-विग्रहगतिने प्राप्त थयेला, अने अविग्रहगतिसमापन-उत्पत्तिक्षेत्रने प्राप्त थयेला.
से आप का बेतुकी को को कोर एक नाक जाम भने कोर एक नाक मजाक
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