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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१४॥
उद्देशः२ ॥६४१॥
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नाणपज्जवा सुयअन्नाणपज्जवा अणंतगुणा महअन्नाणपज्जवा अणतगुणा | एएसिणं भते! आभिणिबोहियणाणपजवाणं जाव केवलनाणप. महअन्नाणप० सुयअन्नाणप.विभंगनाणप० कयरे २जाव विसेसाहिया वा!, गोयमा! सव्वत्थोवा मणपज्जवनाणपज्जवा विभंगनाणपज्जवा अणंतगुणा ओहिणाणपजवा अणंतगुणा सुयअन्नाणपजवा अणंतगुणा मुयनाणपजवा विसेसाहिया महअन्नाणपज्जवा अणंतगुणा आभिणियोहियनाणपजवा विसेसाहिया केवलणाणपज्जवा अणंतगुणा। सेवं भंते! सेवं भंते ! त्ति ॥ (सूत्र ३२२)॥ अट्ठमस्स सयस्स बितिओ उद्देसो ॥८-२॥
[प्र०] हे भगवन् । ए (पूर्व कहेला ) आमिनिबोधिकज्ञाम, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्यवज्ञान अने केवलज्ञानना पर्यायोमा | कोना पर्यायो कोनाथी यावद् विशेषाधिक छे ? [उ०] हे गौतम ! मनःपर्यवज्ञानना पर्यायो सौथी थोडा छे, तेथी अवधिज्ञानना पर्यायो अनंतगुण छ, तेथी श्रुतज्ञानना पर्यायो अनन्त छे तेथी अनंतगुण आभिनिवोधिकज्ञानना पर्यायो छे, अने तेथी अनंतगुण केवलज्ञानना पर्यायो छे. [प्र०] हे भगवन् ! ए मतिअज्ञान श्रुतअंझान अने विभंगज्ञानना पर्यायोमा कोना पर्यायो कोना पर्यायोथी यावद् विशेषाधिक छ ? [उ.] हे गौतम! सर्वथी थोडा विभंगज्ञानना पर्यायो छे, तेथी अनंतगुण श्रुतअज्ञानना पर्यायो छे, अने | तेथी अनंतगुण मतिअज्ञानना पर्यायो छ. [म.] हे भगवन् ! ए आभिनिबोधिकज्ञानना यावत् केवलज्ञानना तथा मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान, अने विभंगज्ञानना पर्यायोमा कोना पर्यायो कोना पर्यायोथी यावत् विशेषाधिक छे ? [उ०] हे गौतम ! सौथीथोडा मन:पर्यायज्ञानना पर्यायो छे, तेथी अनंतगुण विभंगज्ञानना पर्यायो छे, तेथी अनंतगुण अवधिज्ञानना पर्यायो छे. तेथी अनंतगुण श्रुत
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