________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भ्याख्याप्रज्ञतिः ॥६४०॥
८ शतके उद्देशः २
4%+14.
[प्र०] हे भगवन् ! ज्ञानी ज्ञानीपणे कालथी क्यांमुधी रहे ? [उ०] हे गौतम ! ज्ञानी वे प्रकारना कया छे, ते आ प्रमाणेसादि सपर्यवसित अने सादिअपयवसित. तेमा जे ज्ञानी सादिपर्यवसित छे ते जघन्यथी अन्तर्मुहूर्त सुधी अने उत्कृष्ट यी काइक अधिक छासठ सागरोपम मुधी ज्ञ नीपणे रहे . [प्र०] हे भगवन् ! आभिनिवोधि कज्ञानी, आभिनिवोधिकज्ञानीपणे कालथी कंठला काल सुधी रहे ? [उ.] ए प्रमाणे ज्ञानी आभिनिबोधिक ज्ञानी, यावत् केवलज्ञानी, अज्ञानी, मतिअज्ञानी. श्रुतअज्ञानी अने विभंगज्ञानी| ए दशनो ज्ञानीपणे स्थितिकाल प्रज्ञापनासूत्रना अढारमा कायस्थितेिपदमां कह्या प्रमाणे जाणवो; अने जीवाभिगमसूत्रमा कथा प्रमाणे |ए दशर्नु परस्पर अन्तर जाणवू तेमज प्रज्ञापनामूत्रना बहुवक्तव्यता पदमां कद्या प्रमाणे त्रणे ज्ञानी, अज्ञानी अने उभयना अल्पबहुत्वो
जाणवा. [प्र०] हे भगवन् ! आभिनिबोधिकज्ञानना केटला पर्यायो कह्या छे ? [उ०] हे गौतम ! आभिनिबोधिकज्ञानना अनन्त पर्यायो कद्या हे. [प्र०] हे भगवन् ! श्रुतज्ञानना केटला पर्यायो कह्या छ ? [उ०] हे गौतम ! पूर्व प्रमाणे (अनन्त पर्यायो) जाणवा. ए प्रमाणे यावन केवलज्ञानना पर्यायो जाणवा, तेम मति अज्ञान अने श्रुतअज्ञानना पण पर्यायो जाणवा. [H०] हे भगवन् ! विभं| गज्ञानना केटला पर्यायो कह्या छ ? [उ.] हे गौन! विभंगज्ञानना अनन्त पर्यायो कह्या के.
एएसि णं भंते !आभिणिवोहियनाणपजवाणं सुयनाण. ओहिनाणमणपज्जवनाण केवलनाणपजवाण य कयरे २ जाव विसेसाहियावा,गोयमा! मम्वत्थोवा मणपजवनाणपज्जवा ओहिनाणपज्जवा अणतगुणा सुयनाणपजवा अणंतगुणा आभिणियोहियनाणपज वा अणंतगुण केवलनाणपजवा अणंतमुणा । एएसिण भंते ! महअ. नाणपज्जवाणं सुयअन्नागविभंगनागपजवाग य कयरे २ जाव विसेसाहिया वा?,गोयमा ! सब्बथोवा विभंग
4kiE
For Private and Personal Use Only