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८ शतके उद्देशः ॥६३९॥
[प्र.] हे भगवन् ! श्रुतअज्ञाननो विषय केटलो कयो ? [उ०] हे गौतम ! ते संक्षेपथी चार प्रकारनो कह्यो छे, ते आ व्याख्या-1
पमाणे-द्रव्यथी, क्षेत्रथी, कालथी अने भावथी. द्रव्ययी श्रुतप्रज्ञानी श्रुतअज्ञानना विषयभूत द्रव्योने कहे थे, जणावे छे अने प्ररूपे प्रज्ञप्तिः के ए प्रमाणे क्षेत्रयी अने कालथी जाणवू. भावथी श्रुतअज्ञानी श्रुतअज्ञानना विषयभूत भावोने कई छे, जणावे के अने प्ररूपे छे. ॥६३९॥
म.] हे भगवन् ! विभंगज्ञाननो विषय केटलो कयो के ? [उ०] हे गौतम! ते संक्षेपथी चार प्रकारनो कयो छे, ते आ प्रमाणेद्रव्यथी, क्षेत्रथी, कालथी अने भावथी; द्रव्यथी विभंगज्ञानी विमंगज्ञानना विषयभूत द्रव्योने जाणे छे अने जुए छे, प.प्रमाणे यावत् भावथी विभंगज्ञानी विभंगज्ञानना विषयभूत भावोने जाणे के अने जुए थे.॥३२१ ॥
णाणी णं भंते ! णा गीति कालओ केवच्चिरं होइ ?, गोयमा! नाणी दुविहे पन्नत्ते, तंजाहा-साइए वा अपज्जवसिए साइए वा सपजवसिए, तत्थ णं जे से साइए मपज्जवसिए से जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उनोसेणं छावहि मागरोवमाइं सानिरेगाई । आभिणिबोहियणाणी णं भंते ! आभिणियोहिय० एवं नाणी आभिणियो हियनाणी जाव केवलनाणी । अन्नागी मइअन्नागी सुयअन्नागी विभंगनागी, एएसिं दमण्हवि संचिट्ठणा जहा | कायट्टिईए ॥ अंतरं सव्वं जहा जीवाभिगमे ।। अप्पायहुगाणि तिन्नि जहा बहुवत्तन्वयाए ॥ केवतिया णं भंते !
आभिणियोहियणागपजवा पगत्ता ?, गोयमा! अणंता आभिणियोहियणागपज्जवा पगत्ता, केवतिया णं भंते ! सुयनाणपज्जवा पण्णत्ता, एवं चेव, एवं जाव केवलनागस्न । एवं मइअन्नाणस्म सुयअन्नाणस्स, केव#तिया णं भंते! विभंगनागपजवा पण् गत्ता, गोयमा ! अणंता विभंगनाणपज्जवा पण्णत्ता।
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