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८ शतके
व्याख्याप्रज्ञतिः ॥६३८॥
क्षेत्रथी, कालथी अने भावथी द्रव्यथी अवधिज्ञानी रूपि द्रव्योने जाणे छे अने देखे छे-इत्यादि जेम नंदीमत्रमा कयु छ तेम यावत् भाव सुची जाणवू. [प्र.] हे भगवन् ! मनःपर्यवज्ञाननो विषय केटलो को छे' [उ.] हे गौतम! संक्षेपथी चार प्रकारनो कह्यो छे, ते आ प्रमाणे-द्रव्यथी, क्षेत्रथी कालथी अने भावथी. द्रव्यथी ऋजुमतिमनःपर्यवज्ञानी (मनपणे परिणत) अनंतप्रदेशिक अनन्त
उद्देशः २ | स्कंधोने जाणे अने देखे-इत्यादि जेम नंदीसूत्रमा कयुं छे तेम अहीं जाणवू, यावत् भावथी जाणे . [प्र०] हे भगवन् ! केवलज्ञा- ॥६३८॥
नो विषय केटलो को छ ? [उ०] हे गौतम! ते संक्षेपथी चार प्रकारनो कह्यो छे, ते आ प्रमाणे-द्रव्यथी, क्षेत्रथी, कालथी अने भावथी. द्रव्यथी केवलज्ञानी सर्व द्रव्योने जागे के अने जुए छे, ए प्रमाणे यावत् भावथी (केवलज्ञानी सर्व भावोने जाणे के अने & जुए छे.) [प्र.] हे भगवन् ! मतिअज्ञाननो विषय केटलो कसो छ ? [उ०] हे गौतम ! ते चार प्रकारनो कयो छे, ते आ प्रमाणे
द्रव्यथी, क्षेत्री, कालथी अने भ.वथी. द्रव्यथी मतिअज्ञानी मतिअज्ञानना विषयने प्राप्त द्रव्योने जाणे छे अने जुए के ए प्रमाणे । यावत् भावथी मतिअज्ञानी मतिअज्ञानना विषयभूत भावोने जाणे छे अने जुए छे...
सुयअन्नाणस्स णं भंते! केवतिए विसए पण्णत्ते?.गोयमा! से समासओ चउम्बिहे पण्णत्ते, तंजहा-दव्यओ २४, दवओ णं सुयअन्नाणी सुयअन्नाणरिगयाइं दवाइं आघवेति पन्नवेति परूवेह, एवं खेत्तओ कालओ, भा
बओणं सुयअन्नाणी सुयअन्नाणपरिगए भावे आघवेति तं चेव । विभंगणाणस्स ण भंते ! केवतिए विसए पण्णत्ते,गोयमा से समासओ चउबिहे पण्णत्ते,तंजहा-दव्वओ४,दब्बओ णं विभंगनाणी विभंगनाणपरिगयाई दवाई जाणइ पासइ.एवं जाच भावओ णं विभंगनाणी विभंगनाणपरिगए भावे जाणइ पासइ (सूत्रं ३२१॥il
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