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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८ शतके व्याख्याप्रज्ञतिः ॥६३८॥ क्षेत्रथी, कालथी अने भावथी द्रव्यथी अवधिज्ञानी रूपि द्रव्योने जाणे छे अने देखे छे-इत्यादि जेम नंदीमत्रमा कयु छ तेम यावत् भाव सुची जाणवू. [प्र.] हे भगवन् ! मनःपर्यवज्ञाननो विषय केटलो को छे' [उ.] हे गौतम! संक्षेपथी चार प्रकारनो कह्यो छे, ते आ प्रमाणे-द्रव्यथी, क्षेत्रथी कालथी अने भावथी. द्रव्यथी ऋजुमतिमनःपर्यवज्ञानी (मनपणे परिणत) अनंतप्रदेशिक अनन्त उद्देशः २ | स्कंधोने जाणे अने देखे-इत्यादि जेम नंदीसूत्रमा कयुं छे तेम अहीं जाणवू, यावत् भावथी जाणे . [प्र०] हे भगवन् ! केवलज्ञा- ॥६३८॥ नो विषय केटलो को छ ? [उ०] हे गौतम! ते संक्षेपथी चार प्रकारनो कह्यो छे, ते आ प्रमाणे-द्रव्यथी, क्षेत्रथी, कालथी अने भावथी. द्रव्यथी केवलज्ञानी सर्व द्रव्योने जागे के अने जुए छे, ए प्रमाणे यावत् भावथी (केवलज्ञानी सर्व भावोने जाणे के अने & जुए छे.) [प्र.] हे भगवन् ! मतिअज्ञाननो विषय केटलो कसो छ ? [उ०] हे गौतम ! ते चार प्रकारनो कयो छे, ते आ प्रमाणे द्रव्यथी, क्षेत्री, कालथी अने भ.वथी. द्रव्यथी मतिअज्ञानी मतिअज्ञानना विषयने प्राप्त द्रव्योने जाणे छे अने जुए के ए प्रमाणे । यावत् भावथी मतिअज्ञानी मतिअज्ञानना विषयभूत भावोने जाणे छे अने जुए छे... सुयअन्नाणस्स णं भंते! केवतिए विसए पण्णत्ते?.गोयमा! से समासओ चउम्बिहे पण्णत्ते, तंजहा-दव्यओ २४, दवओ णं सुयअन्नाणी सुयअन्नाणरिगयाइं दवाइं आघवेति पन्नवेति परूवेह, एवं खेत्तओ कालओ, भा बओणं सुयअन्नाणी सुयअन्नाणपरिगए भावे आघवेति तं चेव । विभंगणाणस्स ण भंते ! केवतिए विसए पण्णत्ते,गोयमा से समासओ चउबिहे पण्णत्ते,तंजहा-दव्वओ४,दब्बओ णं विभंगनाणी विभंगनाणपरिगयाई दवाई जाणइ पासइ.एवं जाच भावओ णं विभंगनाणी विभंगनाणपरिगए भावे जाणइ पासइ (सूत्रं ३२१॥il For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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