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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥६४२॥
अज्ञानना पर्यायो हे, तेना करतां श्रुतज्ञानना पर्यायो विशेषाधिक छे, तेथी मतिअज्ञानना पर्यायो अनंतगुण छे, तेथी मतिज्ञानना पर्यायो विशेषाधिक छे अने तेना करता केवलज्ञानना पर्यायो अनंतगुण . हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे
I४८ शतके छे. एम कही भगवान् गौतम! यावत् विहरे छे. ॥३२२॥
* उद्देशः ३ भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमत्रना आठमा शतकमां बीजा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
॥६४२॥
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उद्देशक ३. कइविहा णं भंते ! रुक्खा पन्नत्ता ?, गोयमा ! तिविहा रुक्खा पण्णत्ता, तंजहा-संखेजजीविया असंखेजजीविया अणंतजीविया । से किं तं संखेजजीविया ?, संखे० अणेगविहा पण्णत्ता, तंजहा-ताले तमाले तकलि तेतलि जहा पन्नवणाए जाव नालिएरी, जे यावन्ने तहप्पगारा, सेत्तं संखेजजीविया । से किंतं असंखेजजीविया?, असंखेजजीविया दुविहा पण्णत्ता, तंजहा-एगट्ठिया य बहुबीयगा य, से किं तं एगट्टिया ?, २ अणेगविहा पण्णत्ता, तंजहा-निबंबजंबु० एवं जहा पन्नवणापए जाव फला बहुवीयगा, सेत्तं बहुबीयगा, सेत्तं असंखेज्जजीविया। से किं तं अणंतजीविया ?, अणंतजीविया अणेगविहा पण्णत्ता, तंजहा-आलुए मूलए सिंगबेरे, एवं | जहा सत्तमसए जाव सीउण्हे सिंउंढी मुसुंढी, जे यावन्ने त०, सेत्तं अणंतजीविया ।। (सूत्रं ३२३)॥
प्र०] हे भगवन् ! वृक्षो केटला प्रकारना कह्या छ ? [उ०] हे गौतम ! वृक्षो त्रण प्रकारना कह्या छे; ते आ प्रमाणे-संख्यात
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