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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥६३६॥
८ शतके उद्देशः२ |॥६३६॥
NEHASHA
| पद्मलेश्यावाला जीवो पण जाणवा. शुक्ललेश्यावाळा सलेश्यनी पेठे (मु० ९५.) जाणवा अने अलेश्य-लेश्याविनाना जीवो सिद्धोनी | पेठे (मू. ३०.) जाणवा. [प्र०] हे भगवन् ! सकपायी! जीवो शुं ज्ञानीछे के अज्ञानी छ ? [उ.] सेंन्द्रिय जीवोनी पेठे (सू०
३५.) जाणवा. ए प्रमाणे यावत् लोभकषायी जीयो जाणवा. [प्र०] हे भगवन् ! अकषायी जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छ ? [[उ०] तेओने पांच ज्ञान भजनाए होप छे. [प्र.] हे भगवन् ! वेदसहित जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छ ? [उ०] तेओ सइन्द्रिय जीवोनी पेठे (सू० ३५.) जाणवा. ए प्रमाणे स्त्रीवेदी,पुरुषवेदी अने नपुंसकवेदी जीवो जाणवा,तथा वेदरहित जीवो अकषायी जीवोनी | पेठे (सू०९८.) जाणवा. [प्र०] हे भगवन् ! आहारक जीवो शुं ज्ञानी के अज्ञानी छ ? [उ०] तेओ सकषायी जीवोनी पेठे (सू०९७) जाणवा. परन्तु विशेष ए ले के तेओने केवलज्ञान (अधिक) होय छे. [म०] हे भगवन् ! अनाहारक जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छ ? [उ०] हे गौतम! तेओने मनःपर्यवज्ञान सिवायना चार ज्ञान अने त्रण अज्ञान भजनाण होय छे. ।। ३२० ॥
आभिणियोहियनाणस्स णं भंते ! केवतिए विसए पन्नत्ते ?, गोयमा! से समासओ चउविहे पन्नत्ते, तंजहा-दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ, दबओ णं आभिणियोहियनाणी आएसेणं सव्वदव्वाइं जाणइ पासइ, खेत्तओ आभिणिबोहियणाणी आपसेणं सब्बखेत्तं जाणइ पासइ, एवं कालओवि, एवं भावओवि । सुयनाण. स्म णं भंते ! केवतिए विसर पण्णत्ते ?, गोयमा ! से समासओ चउब्बिहे पण्णत्ते, तंजहा-दव्वओ ४, दवओ णं सुयनाणी उपउत्ते सव्वदव्वाइं जाणति पासति, एवं खेत्तओवि कालओवि, भावओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वभावे जाणाति पासति । ओहिनाणस्स णं भंते ! केवतिए विसए पन्नत्ते ?, गोयमा ! से समासओ चउ
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