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८ शतके
उद्देशः२ ॥६३०॥
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दर्शनलब्धिरहित जीवो शुं ज्ञानी ले के अज्ञानी छ ? [उ.] हे गौतम ! दर्शनलब्धिरहित जीवो होता नथी. सम्यग्दर्शनलब्धिवाळा व्याख्या
जीवोने भजनाए पांच ज्ञान होय छे, अने सम्यग्दर्शनलब्धिरहित जीवोने भजाए त्रण अज्ञान होय छे. [प्र०] हे भगवन् : मिथ्या प्रज्ञप्तिः दर्शनलब्धिवाळा जीवो ज्ञानी होय के अज्ञाी? [उ.] तेआने त्रण अज्ञान भजनाए होय छे. मिथ दर्शनल.धरहित (सम्यग्दृष्टि ॥६३०॥ अने मिश्रष्टि) जीवोने पांच ज्ञान अने त्रण अज्ञान भजनाए होय छे. सम्यगमिथ्यादर्शनलब्धवाळा (मिश्राष्टि) जीवो मिथ्याद
निलब्धिवालानी पेठे जाणवा. सम्यगमिथ्यादर्शनलब्धिरहित जीवो जेम मिथ्यादर्शनलाब्धरहित जीवो कह्या ते प्रमाणे जाणवा.
प्र०] हे भगवन् ! चारित्रलब्धिबाळा जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञाी छे ? [उ.] हे गौतम ! तेओने पांच ज्ञान भजनाए होय छे. लेचारित्रलब्धिरहित जीवोने मनःपर्यवज्ञान शिवाय चार ज्ञान अने त्रण अज्ञान भजनाए होय छे. [प्र.] हे भगवन् ! सामायिकचारित्र
लब्धिवाळा जीवो शुं ज्ञानी होय छे के अज्ञानी होय ? [उ.] हे गौतम! तेओ ज्ञानी होय छे. तओने केवलज्ञान शिवाय चार ज्ञान भजनाए होय छे. सामायिकचारित्रज्ञानलब्धिरहित जीवोने पांच ज्ञान अने त्रण अज्ञान भजनाए होय छे. ए प्रमाणे जेवी रीते सामायिकचारित्रलब्धिवाळा अने सामायिकचारित्रलब्धरहित जीवो कह्या तेम यावत् यथारख्यातचारित्रलब्धिवाला अने यथाख्यातचारित्रलब्धिरहित जीवो कदेवा. परन्तु यथाख्यातचारित्रलब्धिवाळाने पांच ज्ञान भजनाए जाणवा.
चरित्ताचरित्तलद्धिया भंते!जीवा किं नाणी अन्नाणी?, गोयमा! नाणी,नो अन्नाणी,अत्थेगइया दुण्णाणी | अत्थेगतिया तिन्नाणी, जे दुन्नाणी ते आभिणिबोहियनाणी य सुयनाणी य, जे तिन्नाणी ते आभि० सुयना. ओहिना, तस्स अल. पंच नाणाई तिन्नि अन्नाणा भयणाए४ ॥ दाणलद्धियणं पंच नाणाई तिन्नि अन्नाणाई।
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