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८शतके - उद्देशः२
॥६२९।।
अने श्रुतज्ञानलब्धिरहित जीवो जाणवा.) विभंगज्ञानलग्धिवाळा जीवोने अवश्य त्रण अज्ञान होय छे, अने विभंगज्ञानलब्धिरहित व्याख्या
जीवोने भजनाए पांच ज्ञान के अवश्य वे अज्ञान होय छे. प्रज्ञप्तिः 3 दंसणलद्धिया णं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी, गोयमा! नाणीवि अन्नाणीवि, पंच नाणाई ॥३२९॥ तिन्नि अन्नाणाई भयणाए, तस्स अलद्विया णं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी?, गोयमा तस्स अलद्धिया
नस्थि । सम्मइंसणलद्धियाणं पंच नाणाई भयणाए, तस्स अलद्धियाणं तिन्नि अन्नाणाई भयणाए, मिच्छादसण लद्धिया णं भंते ! पुरुछा, तिन्नि अन्नाणाई भयणाए, तस्स अल द्वयाणं पंच नाणाई तिन्नि य अन्नाणाई भयणाए, सम्मामिच्छादंसणलद्धिया य अलद्धिया य जहा मिच्छादसणलद्धी अलद्धीतहेव भाणियव्वं ॥ चरित्तलद्धिया णं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी?, गोयमा! पंच नाणाई भयणाए, तस्म अलद्धियाणं मणयजवनाणवजाइं |चत्तारि नाणाई तिन्नि य अन्नाणाई भयणाण, सामाइय चरित्तलटिया णं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी ? गोयमा! नाणी, केवल बजाईचत्तारि नाणाई भयणाए, तस्म अलद्धियाणं पंच नाणाई तिनि य अन्नाणाई भ
यणाए, एवं जहा मामाइयचरित्तलद्धिया अलद्विया य भणिया एवं जाय अहाव यचरित्तलद्विया अलविया माय भाणियब्वा, नवरं अहकवायचरित्तलद्धिया पंच नाणाई भ०३ ।
म. हे भगवन् ! दर्शनलब्धिवाळा जीवो शुं ज्ञानी ले के अज्ञानी है ? [उ०] हे गौतम ! तेओ ज्ञानी पण छे अने अज्ञानी पण छे. (जेओ ज्ञानी छे ) तेओने पांच ज्ञान, अने (जेओ अज्ञानी हे तेओने) व्रण अज्ञान भजनाए होय छे. [प्र०] हे भगवन् !
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