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याख्याप्रज्ञप्तिः
॥६२८॥
॥६२८॥
[प्र०] हे भगवन् ! अवधिज्ञानल ब्धिरहित जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छ ? [उ०] हे गौतम! तेओ ज्ञानी पण छे अने अज्ञानी पण छे, ए प्रमाणे तेओने अवधिज्ञान शिवाय चार ज्ञान अने त्रण अज्ञान भजनाए होय छे. [प्र.] हे भगवन् ! मनःपर्य- ४८ शतके वज्ञानलब्धिवाळा जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छ ? [उ०) हे गौतम! तेओ ज्ञानी छे, पण अज्ञानी नथी; तेमां केटलाक उद्देशः२ त्रण ज्ञानवाळा छे अने केट लाक चार ज्ञानवाला छे.जेत्रण ज्ञानवाला छे तेओ आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी अने मनःपर्यवज्ञानी छे, अने जेओ चार ज्ञानवाला छे तेओ आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी अने मनःपर्यवज्ञानी छे. [प्र०] मनःपर्यवज्ञा| नलब्धिरहित जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छे ? [उ०] हे गौतम ! तेओ ज्ञानी पण छे अने अज्ञानी पण छे, तेओने मनःपर्यवज्ञान शिवाय चार ज्ञान अने त्रण अज्ञान भजनाए छे. [प्र०] हे भगवन् ! केवलज्ञानलब्धिवाला जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छे? [उ.] हे गौतम ! तेओ ज्ञानी छे पण अज्ञानी नथी. तेओ अवश्य एक केवलज्ञानवाला छे. [प्र०] केवलज्ञानलब्धिरहित जीवो ज्ञानी छे के अज्ञानी छ ? [उ०] हे गौतम! तेओ ज्ञानी पण छे अने अज्ञानी पण छे. तेओने केवळज्ञान शिवाय चार ज्ञान अने त्रण अज्ञान भजनाए होप छे. [प्र०] हे भगवन् ! अज्ञानलब्धिवान जीवो शुं ज्ञानी छ के अज्ञानी छ ? [उ०] हे गौतम ! तेओ ज्ञानी नथी, पण अज्ञानी छे. तेओने त्रण अज्ञान भजनाए होय छे. [प्र०] हे भगवन् ! अज्ञानलब्धिरहित जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छ ? [उ०] हे गौतम! तेओ ज्ञानी छे पण अज्ञानी नबी; तआन पांच ज्ञान भजनाए होय छे. छेम अज्ञानलब्धिवाळा अने अज्ञानलब्धिरहित जीवो कह्या तेम मतिअज्ञान अने श्रुतअज्ञानलब्धिवाळा अने ते लब्धिथी रहित जीवो कहेवा. (एटले अज्ञानलब्धिवाळानी | पेठे ( सू० ७७ ) मतिअज्ञान अने श्रुतअज्ञानलब्धिवाळा जीवो जाणवा, अने अज्ञानलब्धिरहित जीवोनी पेठे (सू० ७८ ) मत्यज्ञान
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