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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥५७६॥
८ शतके उद्देशः१ ॥५७६॥
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कह्या छे. ए प्रमाणे तेइन्द्रिय अने चउरिन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो पण जाणवा. [म०] हे भगवन् ! पंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो का केटला प्रकारना कह्या छ ? [उ०] हे गौतम ! ते चार प्रकारना कह्या छे. ते आ प्रमाणे-नारकपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत, तियचपंचे|न्द्रियप्रयोगपरिणत, ए प्रमाणे मनुष्यपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत अने देवपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत. [प्र०] हे भगवन् ! नैरयिकपंचेन्द्रिय
प्रयोगपरिणत पुद्गलो केटला प्रकारना कह्या छे ? [उ०] हे गौतम ! नैरयिकपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो सात प्रकारना कह्या छे; | ते आ प्रमाणे-रत्नप्रभापृथिवीनैरयिकपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत, अने यावत् नीचे सप्तमनरकपृथिवीनरयिकप्रयोगपरिणत पुद्गलो.
तिरिक्खजाणियपंचिंदियपओगपरिणयाणं पुच्छा,गोयमा ! तिविहा पन्नता, तंजहा-जलचरपंचिंदियतिरिक्खजोणिय० थलचरतिरिक्खजाणियपंचिंदिय०,खहचरतिरिक्खपंचिंदिय०,जलयरतिरिक्खजोणियपओगपुच्छा, | गोयमा!दुविहा पन्नत्ता,तंजहा-समुच्छिमजलयर गन्भवतियजलयर०,थलयरतिरिक्ख० पुच्छा,गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-च उप्पयथलयर परिसप्पथलयर०, चउप्पयथलयर० पुच्छा, गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तंजहासंमुच्छिमचउप्पयथलयर० गम्भवतियचउप्पयथलयर०, एवं एएणं अभिलावेणं परिसप्पा दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-उरपरिसप्पा य भुयपरिसप्पा य, उरपरिसप्पा दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-समुच्छिमा य गन्भवतिया य, एवं भुयपरिसप्पावि, एवं खहयरावि ।
[प्र०] हे भगवन् ! तिर्यंचयोनिकपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो केटला प्रकारना कह्या छ ? [उ०] हे गौतम ! तियंचयोनिकपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो त्रण प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-जलचरतियंचयोनिकपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत, स्थलचरति
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