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व्यख्यिाप्रज्ञप्तिः ॥३२॥
८ शतके उद्देशः२
६२५॥
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|कही छ ? [उ०] हे गौतम ! अज्ञानलब्धि त्रण प्रकारनी कही छे, ते आ प्रमाणे-मतिअज्ञानलब्धि, श्रुतअज्ञानलब्धि अने विभ| गज्ञानलब्धि. [प्र०] हे भगवन् ! दर्शनलब्धि केटला प्रकारनी कही छे ? [उ.] हे गौतम! दर्शनलब्धि त्रण प्रकारनी कही छे, ते
आ प्रमाणे-सम्यग्दर्शनलब्धि, मिथ्यादर्शनलब्धि अने सम्यगमिथ्यादर्शनलब्धि. [प्र.] हे भगवन् ! चारित्रलब्धि केटला प्रकारनी कही छे ? [उ०] हे गौतम ! चारित्रलब्धि पांच प्रकारनी कही छे, ते आ प्रमाणे-१ सामायिकचारित्रलब्धि, २ छेदोपस्थानीयचात्रिलब्धि, ३ परिहारविशुद्धिकचारित्रलब्धि, ४ सूक्ष्मसंपरायचारित्रलब्धि अने ५ यथाख्यातचारित्रलब्धि. [प्र.] हे भगवन् ! चारित्राचारित्रलब्धि केटला प्रकारनी कही छे ? [उ.] हे गौतम! एक प्रकारनी कही छे, ए प्रमाणे [दानलब्धि,] यावत् उपभोगलब्धि पण एक प्रकारनी कही हे. [म.] हे भगवन् ! वीर्यलब्धि केटला प्रकारनी कही छे? [उ०] हे गौतम ! वीर्यलब्धि त्रण | प्रकारनी कही छे, ते आ प्रमाणे-बालवीर्यलब्धि पंडितवीर्यलन्धि अने बालपंडितवीर्यलब्धि... I इंदियलद्धो णं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता?,गोयमा! पंचविहा पण्णत्ता,तंजहा-सोइंदियलद्धी जाव फासिंदियलद्धी॥ नाणलद्धिया णं भंते! जीवा किं नाणी अन्नाणी, गोयमा! नाणी, नो अन्नाणी, अत्थेगतिया दुन्नाणी,एवं पच नाणाई भयणाए। तस्स अलद्धिया णं भंते! जीवा किं नाणी अन्नाणी?,गोयमा! नो नाणी,अन्नाणी,अत्थेगतिया दुअन्नाणी,तिन्नि अन्नाणाणि भयणाए। आभिणिबोहियणाणलद्धिया णं भंते! जीवा किं नाणी अन्नाणी?; गोयमा नाणी, नो अन्नाणी, अत्थेगतिया दुन्नाणी, चत्तारि नाणाई भयणाए । तस्स अलद्धिया णं भते जीवा किं नाणी अन्नाणी, गोयमा! नाणीवि अन्नाणीवि, जे नाणी ते नियमा पगनाणी केवलनाणी, जे अन्नाणी ते अत्थेगड्या
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