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८ शतक | उद्देशः२ ॥६२४
____ कहविहा णं भंते ! लद्धी पण्णत्ता ?, गोयमा ! दसविहा लद्धी पण्णता, तंजहा-नाणलदी १ दमणलद्धी याख्या
15२चरित्तलद्धी३चरित्ताचरित्तलद्री४ दाणलदो५लाभली६ भोगलद्धी ७ उवभोगली८ विरियलद्धी ९ प्रज्ञतिः
इंदियलद्वी १० । णाणलद्धो णं भंते ! कइबिहा पण्णता ?; गोयमा! पंचविहा पणत्ता, तंजहा-आभिणियो॥६२४॥
हियणाणलद्धी जाव केवलणाणलद्धी ।। अन्नाणलद्धी णं भंते : कतिविहा पण्णता ?, गोयमा ! तिविहा पण्ण
त्ता, तंजहा-मइअन्नाणलद्धी सुयअन्नाणली विभगनाणलद्धी। दसणलद्धी णं भंते ! कतिविहा पन्नत्ता!, ४गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता, तंजहा-सम्मइंसणलद्धी मिच्छादसणलद्धी सम्मामिच्छादसणलद्धी॥ चरित्तलद्धी |णं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता?, गोयमा! पंचविहा पन्नत्ता, तंजहा-सामाइयचरित्तलद्धो छेदोवद्यावणिय लद्धी |परिहारविसुद्धलद्धी सुहमसंपराग लद्धी अहवायचरित्तलद्धीचरित्ताचरित्तलद्धीणं भंते! कतिविहा पण्णत्ता! ४ गोयमा ! एगागारा पण्णत्ता, एवं जाव उवभोगलद्धी एगागारा पन्नत्ता ॥ वीरियलद्धी णं भंते ! कतिविहा है। पण्णत्ता ?, गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता, तंजहा-बालवीरियलद्धी पंडियबीरियलद्धी बालपंडियबीरियलद्धी। I [प्र०] हे भगवन् ! लब्धि केंटला प्रकारे कही छ ? [उ०] हे गौतम ! लब्धि दश प्रकारे कही छै, ते आ प्रमाणे-१ ज्ञानलब्धि, २ दर्शनलब्धि, ३ चारित्रलब्धिं, ४ चारित्राचारित्रलब्धि, ५ दानलब्धि, ६ लाभलब्धि, ७ भोगलब्धि, ८ उपभोगलब्धि,
वीर्यलब्धि, अने १० इन्द्रियलब्धि. [प्र०] हे भगवन् ! ज्ञानलब्धि केटला प्रकारनी कही छे ? [उ०] हे गौतम ! ज्ञानलब्धि पांच | प्रकारनी कही छे, ते आ प्रमाणे-आभिनिबोधिकज्ञानल.ब्ध, यावत् केवलज्ञानलब्धि. [प्र.] हे भगवन् ! अज्ञानलन्धि केटला प्रका
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