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शतके उद्देशः२ ॥६२३॥
तेओने त्रण ज्ञान भजनाए होय छे अने अवश्य चे अज्ञान होय छे. नरयिकोनी पेठे (सू०४७.) वानन्यंतरोने जाणवं. तथा अपर्याप्त व्याख्या
|ज्योतिषिको अने वैमानिकोने त्रण ज्ञान अने त्रण अज्ञान अवश्य होय छे. [प्र०] हे भगवन् ! नोपर्याप्त अने नोअपर्याप्त जीवो शुं प्रज्ञप्तिः ज्ञानी छे के अज्ञानी ? [उ०] हे गौतम! तेओ सिद्धनी पेठे (सू० ३०.) जाणवा. [प्र.] हे भगवन् ! निरयभवस्थ जीयो शुं ॥३२३॥ ज्ञानी छे के अज्ञानी छे ? [उ०] हे गौतम! तेओ निरयगतिकनी पेठे (मू० ३१.) जाणवा. [प्र.] हे भगवन ! तिर्यगभवस्थ जीवो
शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छ ? [उ.] हे गौतम ! तेओने त्रण ज्ञान अने त्रण अज्ञान भजनाए के. [प्र०] हे भगवन् ! मनुष्यवस्थ जीवो शुं ज्ञानी ले के अज्ञानी छे ? [उ.] हे गौतम! तेओ सकायिकनी पेठे (सू०३८.) जाणवा [प्र०] हे भगवन् ! देवभवस्थ जीवो शुं ज्ञानी डे के अज्ञानी छ ? [उ.] हे गौतम ! तेओ निरयभवस्थनी पेठे (मु०५१.) जाणवा. अभवस्थ-भवमा नहि रहेनारा (शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छ ? [उ.] हे गौतम! तेओ) सिद्धोनी पेठे (मू०३०.) जाणवा. [प्र.] हे भगवन् ! भवसिद्धिक-भव्य जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छ ? [उ०] हे गौतम! तेओ सकायिकनी पेठे (सू० १८.) जाणवा. [प्र०] हे भगवन् ! अभव मेद्धिक अभव्य जीवो शुं ज्ञानी के के अज्ञानी छ ? [उ.] हे गौतम ! तेओ ज्ञानी नथी पण अज्ञानी छे, अने तेओने त्रण अज्ञान भजनाए होय छे. [प्र०] हे भगवन् ! नोभवसिद्धिक नोअभवसिद्धिक जीयो शु ज्ञानी के के अज्ञानी छ ? [उ०] हे गौतम ! तेओ सिद्धोनी |पेठे (सू० ३०.) जाणवा. [प्र.] हे भगवन् ! संज्ञिजीवो शुं ज्ञानी के के अज्ञानी के ? [उ०] हे गौतम : तेओ सेन्द्रियनी छापेठे (सू० ३५.) जाणवा. असंशिजीवो बेइन्द्रियनी पेठे (मू० २८.) जाणवा. नोसंज्ञि-नोप्रसंज्ञि जीवो सिद्धोनी पेठे (सू० HI३०.) जाणवा. ॥ ३१८ ॥
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