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याख्याप्रज्ञप्तिः ॥६२६॥
८ शतके उद्देशः२ ॥६२६॥
दुअन्नाणी, तिन्नि अन्नाणाई भयणाए, एवं सुयनाणलद्धीयावि, तस्स अलद्धीयावि जहा आभिणियोहियनाणस्स अलद्धीया। ओहिनाणलद्धीया णं पुच्छा, गोयमा! नाणी, नो अन्नाणी, अत्थेगइया तिनाणी, अत्थेगतिया चउनाणी, जे तिनाणी ते आभिणिबोहियनाणी सुयनाणी ओहिनाणी, जे चउनाणी ते आभिणियोहियनाणी | सुय० ओहि मणपज्जवनाणी।
[प्र.] हे भगवन् ! इंद्रियलब्धि केटला प्रकारनी कही छे ? [उ०] हे गौतम ! इंद्रियलब्धि पांच प्रकारनी कही छे, ते आ | प्रमाणे-श्रोत्रेन्द्रियलब्धि यावत् स्पर्शेन्द्रियलब्धि, [प्र०] हे भगवन् ! ज्ञानलब्धिवाळा जीवो शुं ज्ञानी ले के अज्ञानी छ ? [उ.] हे गौतम! तेओ ज्ञानी छे पण अज्ञानी नथी. केटला एक बेज्ञानवाला छे; ए प्रमाणे तेओने पांच ज्ञान भजनाए होय छे. [प्र०] हे भगवन् ! ज्ञानलब्धिरहित जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छ ? [उ०] हे गौतम ! तेओ ज्ञानी नथी पण अज्ञानी छे. केटलाएक बेअज्ञानवाला छे, अने तेओने त्रण अज्ञान भजनाए होय छे. [प्र०] हे भगवन् ! आभिनियोधिकज्ञानलब्धिवाळा जीवो शु ज्ञानी छे के अज्ञानी छ ? [उ.] हे गौतम! तेओ ज्ञानी होय छे, पण अज्ञानी नथी. केटलाएक बेज्ञानवाळा छे, तेओने चार ज्ञान भजनाए होय छे. ( एटले केटलाएक त्रण ज्ञानवाला अने केटलाएक चार ज्ञानवाळा होय छे.) [प्र०] हे भगवन् ! आभिनिबोधिकज्ञानलब्धिरहित जीवो ज्ञानी छे के अज्ञानी ? [उ०] हे गौतम ! तेओ ज्ञानी पण छे अने अज्ञानी पण छे. जेओ ज्ञानी के तेओ अवश्य एक केवलज्ञानी के जेओ अज्ञानी छे तेमां केटलाक बेअज्ञानवाळा छे अने केटलाक त्रण अज्ञानवाळा छेएटले तेओने भजनाए त्रण अज्ञान होय छे. ए श्रुतज्ञानलब्धिवाळा पण जाणवा. श्रुतज्ञानलब्धिरहित जीवो आभिनिवोधिकलन्धिरहित जीवोनी पेठे जाणवा.
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