________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्राप्ति // 831 // | उद्देशा FACHARACK है| अज्ज खत्तियकुंडग्गामे नयरे इंदमहेइ वा जाव निग्गच्छइ, एवं खलु देवाणुप्पिया! अज्ज समणे भगवं महावीरे है। जाव सब्वन्नू सव्वदरिसी माहणकुंडगामस्स नयरस्स बहिया बहुसालए चेहए अहापडिरूवं उग्गहं जाव विह-IP९कसके | रति, तए णं एए बहवे उग्गा भोगा जाव अप्पेगइया बंदणवत्तियं जाव निग्गच्छंति / तए णं से जमाली खत्तियकुमारे कंचुइज्जपुरिसस्स अंतिए एयमढे सोचा निसम्म हहतुट्ठ० कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ कोडुंबियपुरिसे सद्दा 831 // | बइत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! चाउग्घंट आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह उवट्ठवेत्ता मम एयमाण-| त्तियं पचप्पिणह, तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जमालिणा खत्तियकुमारेणं एवं वुत्ता समाणा जाव पचप्पिणंति, | हवे ते ब्राह्मणकुंडग्राम नगरनी पश्चिम दिशाए ए स्थळे क्षत्रियकुंडग्राम नामे नगर हतुं. वर्णन. ते क्षत्रियकुंडग्राम नामे नगरमां जमालि नामनो क्षत्रियकुमार रहेतो हतो. ते आय-धनिक, तेजस्वी अने यावद् जेनो पराभव न थइ शके एवो (समर्थ) हतो. ते 5 पोताना उत्तम प्रासाद उपर जेमां मृदंगो वागे छे एवा, अने अनेक प्रकारनी सुंदर युवतिओवडे भजवाता बत्रीश प्रकारना नाटकोबडे (नृत्यने अनुसारे) हस्तपादादि अवयवोने नचावतो 2, स्तुति करातो 2, अत्यन्त खुश करातो 2 प्रावृष्, वर्षा, शरद, हेमंत, वसंत, अने ग्रीष्म पर्यन्त ए छए ऋतुओमां पोताना वैभव प्रमाणे सुखनो अनुभव करतो 2, समयने गाळतो, मनुष्यसंवन्धी पांच प्रकारना | इष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप अने गन्धरूप कामभोगोने अनुभवतो विहरे छे. त्यारवाद क्षत्रियकुंडग्राम नामना नगरमां शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क अने चत्वरमां यावत् घणा माणसोनो कोलाहल थतो हतो-इत्यादि औपपातिक सूत्रमा कह्या प्रमाणे कहेवू यावत् घणां | माणसो परसपर ए प्रमाणे जणावे छे, यावत् ए प्रमाणे प्ररूपे छे के-हे देवानुप्रियो ! ए प्रमाणे खरेखर तीर्थनी आदिना करनारा, PRAKASSEX For Private and Personal Use Only