SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 9 शतके व्याख्याप्रज्ञप्तिः // 826 // उदेश // 826 // माहणी आगयपण्हवा तं चेव जाव रोमकूवा देवाणुप्पिए अणिमिसाए दिहीए देहमाणी चिट्ठा 1, गोयमादि समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वयासी-एवं खलु गोयमा! देवाणंदा माहणी मम अम्मा, अहन्नं देवाणदाए माहणीए अत्तए, तए णं सा देवाणंदा माहणी तेण पुवपुत्तसिणहाणुराएणं आगयपण्हया जाव समूसवि. यरोमकूवा मम अणि मिसाए दिट्ठीए देहमाणी 2 चिट्ठह // (सूत्रं 381) / | त्याबाद ते देवानंदा ब्राह्मणीने पानो चढयो-तेना स्तनमांथी धनी धारा छूटी, तेना लोचनो आनंदाश्रुथी मिनां थयां, तेनी हर्षथी एकदम फुलती भुजाओने तेना कडाओए रोकी, (हर्षथी शरीर प्रफुल्लिव थतां) तेनो कंचुक विस्तीर्ण थयो, मेघनी धाराथी विकसित थयेला कदंबपुष्पनी पेठे तेना रोमकूप उमा थया, अने ते श्रमण भगवंत महावीरने अनिमिष दृष्टिथी जोती जोती उभी रही. [प्र.] त्यारे 'भगवन् ! एम कही भगवान् गौतम श्रमण भगवंत महावीरने वांदे छ, नमे छे. बांदीने-नमीने तेणे आ प्रमाणे कयुंहे भगवन् ! आ देवानंदा ब्राह्मणीने पानो केम चढ्यो, अर्थात् तेना स्तनमांथी दूधनी धारा केम वछूटी इत्यादि पूर्व कह्या प्रमाणे यावत् तेने रोमांच केम थयो ? अने देवानुप्रिय तरफ अनिमिष नजरे जोती जोती केम उभी छे ? [उ.] 'हे गौतम ! एम कही| श्रमण भगवान् महावीरे भगवंत गौतमने आ प्रमाणे कड्यु-हे गौतम ! ए प्रमाणे खरेखर आ देवानंदा ब्राह्मणी मारी माता छे, हुं देवानंदा ब्राह्मणीनो पुत्र छु. माटे ते देवानंदा ब्राह्मणीने पूर्वना पुत्रस्नेहानुरागथी पानो चढयो, अने सेना रोमकूप उभा थया, अने | मारी सासु अनिमिष नजरथी जोती उभी छे. // 381 / / तए णं समणे भगवं महावीरे उसभदत्तस्स माहणस्स देवाणंदाए माहणीए तीसे य महतिम 5*** ASSEGGIES For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy