________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्राति // 825 // आवीने यावत् ते धार्मिक उत्तम स्थ उपर चढे छे. त्यारवाद ते ऋषभदत्त ब्राह्मण देवानंदा ब्राह्मणीनी साथे धार्मिक अने श्रेष्ठ | यान (रथ) उपर चढीने पोताना परिवारनी साथे ब्राह्मणकुंडग्राम नामे नगरना मध्यभागमाथी निकळे छे. निकळीने जे स्थळे बहु अके शालक चैत्य छे त्यां अवे छे. त्यां आवी तीर्थकरना छत्रादिक अतिशयोने जुए छ; जोईने धार्मिक श्रेष्ठ रथने उभो राखे छे. उभो 81 राखौ तेना उपरथी नीचे उतरे छे. उतरीने श्रमण भगवंत महावीरनी पासे पांच प्रकारना अभिगमवडे जाय छे. ते आ प्रमाणे- // 825 // 'सचिच द्रव्योनो त्याग करवों-इत्यादि बीजा शतकमां कह्या प्रमाणे यावत् त्रण प्रकारनी उपासनावडे उपासे छे. ते देवानंदा ब्राह्मणी पण धार्मिक यानप्रवरथी नीचे उतरे छे, उतरीने घणी कुब्जदासीओना यावत् मान्य पुरुषना समूहथी परिवृत थईने श्रमण भगवंत | महावीरनी पासे पांच प्रकारना अभिगमवडे जाय . ते आ प्रमाणे-१ सचित्त द्रव्यनो (फलादिनो) त्याग करवो. 2 अचित | द्रव्यनो (आभरणादिनो) त्याग नहि करवो, 3 विनयथी शरीरने अवनत करवू, 4 भगवंतने चक्षुथी जोतां अंजलि करवी. अने 5 मननी एकाग्रता करवी. ए पांच अभिगम वडे ज्यां श्रमण भगवान् महावीर छे त्वां आवे छे. त्यां आवीने श्रमण भगवंत महावीरने त्रण वार प्रदक्षिणा करे छे. करीने वांदे छे, नमे छे. वांदी अने नमी ऋषभदत्त ब्राह्मणने आगळ करी पोताना परिवारसहित उभी रहीने शुश्रूषा करती, नमती अभिमुख रहीने विनयवडे हाथ जोडी यावत् उपासना करे छे / / 380 // तएशंसा देवाणंदा माहणी आगयपण्हाया पप्फुय-लोयणा संवरियवलयबाहा कंचुयपरिक्खित्तिया धाराहयकलंबगंपिय समूमवियरोमकूवा समण भगवं महावीरं अणिमिसाए दिट्ठीए देहमाणी चिट्ठति // भंतेत्ति भगवं गोयमे समण भगवं महाषीरं बंदति नमंसति वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-किण्णं भंते! एसा देवाणंदा SACANC7 For Private and Personal Use Only