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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.arg Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हालियाए इसिपरिसाए जाव परिसा पडिगया / तए णं से उसमदत्त माहणे समणस्स भगवओ महावीरस्स व्याख्या- अंतियं धम्म सोचा निसम्म हद्वतुढे उहाए उद्वेइ उट्ठाए उद्वेत्ता समण भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव नमंसित्ता | PI 9 शतके प्रशासि 13 एवं वदासी-एवमेयं भंते ! तहमेयं ! भंते ! जहा खंदओ जाव से जहेयं तुज्झे वदहत्तिक? उत्तरपुरच्छिमं दिसी- उद्देशा // 827 // भावं भवक्कमह उत्तरपु०२त्ता सयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुयइ सयमे०२त्ता मयमेव पंचमुट्टियं लोयं करेति // 827 // सयमे०२त्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छह 2 समण भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पया-12 हिणं जाव नमंसित्ता एवं वयासी-आलित्ते णं भंते ! लोए पलित्ते णं भंते ! लोए आलित्तपलित्ते ण भंते ! लोए| जराए मरणेण य, एवं एएणं कमेणं इमं जहा खंदओ तहेव पवइओ जाव सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिजइ जाव बहहिं चउत्थछट्ठट्ठमदसमजाव विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे बहूई वासाई सामन्नपरियागं पाउणइ 2 मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेति मास० 2 सहि भत्ताई अणसणाए छेदेति सढि 2 त्ता जस्सहाए कीरति नग्गभावे जाव तमढें आराहइ जाव तमहूँ आराहेत्ता जाव सव्वदुक्खप्पहीणे। त्यारवाद श्रमण भगवान् महावीरे ऋषभदत्त ब्राह्मण, देवानंदा ब्राह्मणी अने अत्यंत मोटी ऋषि पर्षदने धर्म कहो. यावत् पर्षद पाछी गइ. त्यारपछी ते ऋषभदत्त ब्राह्मण श्रमण भगवंत महावीरनी पासे धर्मने सांभळी, हृदयमा धारण करी खुश थयो, तुष्ट थयो अने तेणे उभा थइने श्रमण भगवंत महावीरने त्रण वार प्रदक्षिणा करी, यावत् नमस्कार करी आ प्रमाणे का-'हे भगवन् ! ते ए है प्रमाणे के, हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे.'-इत्यादि स्कंदक तापसना प्रकरणमां कह्या प्रमाणे यावत् 'जे तमे कहो छो ते एमज MARCLICRACT FAC+CHAR For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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