________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्राप्तिः // 1 // ९शतके उद्देशा // 811 // FARKASARDASTAKA वैमानिकमां होय. अथवा ज्योतिष्क, भवनवासी, वानव्यंतर अने वैमानिकमां होय. [प्र.] हे भगवन् ! भवनवासिदेवप्रवेशनक, वानव्यंतरदेवप्रवेशनक, ज्योतिष्कदेवप्रवेशनक अने वैमानिकदेवप्रवेशनकमां कयुं प्रवेशनक कया प्रवेशनकथी यावद् विशेषाधिक छ ? [उ०] हे गांगेय ! वैमानिकदेवप्रवेशनक सौथी अल्प छे, तेना करतां असंख्येयगुण भवनवासिदेवप्रवेनशक छे, तेथी असंख्येयगुण वानव्यंतरदेवप्रवेशनक छे, अने तेनाथी ज्योतिष्कदेवप्रवेशनक संख्यातगुण छे. // 376 / / एयरस ण भंते ! नेरइयपवेसणगस्स तिरिक्ख० मणुस्स. देवपवेसणगस्स कयरे कयरे जाव विसेसाहिए ६|वा?, गंगेया ! सब्वत्थोवे मणुस्सपवेसणए नेरइयपवेसणए असंखेज्जगुणे देवपवेसणए असंखेज्जगुणे तिरिक्खजोणियपवेसणए असंखज्जगुणे / / (सूत्र 377) // [प्र०] हे भगवन् ! नैरयिकप्रवेशनक, तिर्यंचयोनिकप्रवेशनक, मनुष्यप्रवेशनक अने देवप्रवेशनकमां कयुं प्रवेशनक कया प्रवे|शनकथी यावद् विशेषाधिक छे ? [उ०] हे गांगेय! सौथी अल्प मनुष्यप्रवेशनक छे, तेथी नैरयिकप्रवेशनक असंख्यात गुण छे, | तेना करतां असंख्यातगुण देवप्रवेशनक छे अने तेनाथी असंख्यातगुण तिर्यचयोनिकप्रवेशनक छे. // 377 // संतरं भंते! नेरइया उववजंति निरंतरं नेरइया उववअंति संतरं असुरकुमारा उववजंति निरंतरं असुरकु| मारा जाव संतरं वेमाणिया उववज्जंति निरंतरं वेमाणिया उववनंति संतरं नेरइया उववदृति निरंतरं नेरतिया | उववढंति जाव संतरं वाणमंतरा उववदंति निरंतरं वाणमंतरा उववदंति संतरं जोइसिया चयंति निरंतरं जोइ. |सिया चयंति संतरं वेमाणिया चयंति निरंतरं वेमाणिया चयंति', गंगेया! संतरंपि नेरतिया उववजंति निरंतरंपि For Private and Personal Use Only