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________________ स्क Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्राप्तिः // 806 // उदेश यतिरिक्खजोणियपवेसणयस्स य कयरे 2 जाव विसेसाहिया वा, गंगेवा ! सव्वत्थोवा पंचिंदियतिरिक्खजोणियपवेसणए चउर दियतिरिक्वजोणिय विसेमाहिए तेइंदियः विसेसाहिए बेइंदिय विसेसाहिए एगिदियतिरि-15 स्व विसेसाहिए / / (सूत्रं 374) // है 9 शतके [प्र०] हे भगवन् ! तिर्यचयोनिकप्रवेशनक केटला प्रकारे कह्यु छ ? [उ०] हे गांगेय ! पांच प्रकारे का छे. ते आ प्रमाणे -एकेन्द्रियतिर्यंचयोनिकप्रवेशनक, यावत् पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकप्रवेशनक. [प्र०] हे भगवन् ! एक तिर्यचयोनिक जीव तिर्यचयोनि 1604 #कप्रवेशनकवडे प्रवेश करतो शुं एकेन्द्रियोमा होय के यावत पंचेन्द्रियोमा होय ? [उ०] हे गांगेय ! 1 एक तिर्यचयोनिक जीव 8| एकेन्द्रियमा होय अने यावत् 5 पंचेन्द्रियमा पण होय. [प्र०) हे भगवन् ! बे तिर्यचयोनिक जीवो संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गांगेय! 1 एकेन्द्रियोमा पण होय अने यावत् 5 पंचेन्द्रियोमां पण होय. अथवा एकएकेन्द्रियमा अने एक बेइन्द्रियमां पण होय. ए प्रमाणे जेम नैरयिकप्रवेशनकमां कयुं तेम तियंचयोनिकप्रवेशनकमां यावत् असंख्येय तिर्यचयोनिको मुधी कहे. [प्र०] हे भगवन् ! तिर्यचयोनिको उत्कृष्टपणे (शुं एकेन्द्रियोमा होय के यावत् पंचेन्द्रियोमा होय. 1) ए प्रश्न. [उ.] हे गांगेय ! ते बधा एकेन्द्रियोमा होय. अथवा एकेन्द्रियो अने बेइन्द्रियोमा पण होय. ए प्रमाणे जेम नैरयिकोनो संचार कर्यो तेम तियंचयोनिकोनो पण संचार करवो. एकेन्द्रियोने मुक्या सिवाय द्विकसंयोग, त्रिकसंयोग, चतुष्कसंयोग अने पंचकसंयोग उपयोगपूर्वक कहेवो. यावत् अथवा एकेन्द्रिः / योमा बेइन्द्रियोमा यावत् पंचेन्द्रियोमां पण होय. [H0] हे भगवन् ! एकेन्द्रियतियंचयोनिकप्रवेशनक, यावत् पंचेन्द्रियतियंचयोनिकप्रवेशनकमां कयुं प्रवेशनक कोनाथी यावद् विशेषाधिक छे ? [उ०] हे गांगेय ! पंवेन्द्रियतिर्यंचयोनिकप्रवेशनक सौथी अल्प छे, 12 HA CASS For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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