________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्राप्तिः 9 शतके उद्देशा // 801 // // 8.1 // BACANOSITORS अने संख्याता पंकप्रभामा होय. ए प्रमाणे ए क्रमथी त्रिकसंयोग, चतुष्कसंयोग, यावत सप्तकसंयोग जेम दस नैरयिकोनो कह्यो तेम कहेवो. तेनो छेल्लो आलापक-अथवा संख्याता रत्नप्रभामां संख्याता शर्कराप्रभामां अने यावत् संख्याता अधःसप्तमपृथिवीमा होय. ___असंखेजा भंते ! नेरइया नेरहयपवेसणएणं पुच्छा, गंगेया! रयणप्पभाए वा होजा जाव अहेसत्तमाए होजा, | अहवा एगे रयण असंखेजा सकरप्पभाए होज्जा, एवं दुयासंजोगो जाव सत्तगसंजोगो य जहा संखिजाणं भणिओ तहा असंखजाणवि भाणियब्वो, नवरं असंखजाओ अभहिओ भाणियब्बो, सेसं तं चेव जाव सतगसंजोगस्स पच्छिमो आलावगो अहवा असंखजा रयण असंखेजा सक्कर० जाव असंखज्जा अहेसत्तमाए होजा [प्र०] हे भगवन् ! असंख्यात नैरयिको नैरयिकप्रवेशनकवडे प्रवेश करता शुं रत्नप्रभामां होय ?-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गांगेय ! 1 रत्नप्रभामां पण होय अने यावत् 7 अधःसप्तम पृथिवीमां पण होय. 1 अथवा एक रत्नप्रभामां अने असंख्याता शर्करा प्रभामा होय. ए प्रमाणे जेम संख्याता नैरयिकोनो द्विकसंयोग, यावत् सप्तकसंयोग कह्यो तेम असंख्यातानो पण कहेवो. पण विशेष ए के अहिं 'असंख्याता' पद कहे. बाकी बधुं तेज प्रमाणे जाणवं, यावत् छेल्लो आलापक-अथवा असंख्याता रत्नप्रभामां असंख्याता रत्नप्रभामां असंख्याता शकेराप्रभामां यावद् असंख्याता अधःसप्तमपृथिवीमां पण होय. उकोसेणं भंते! नेरइया नेरतियपवेसणएणं पुच्छा, गंगेया ! सव्वेवि ताव रयणप्पभाए होजा अहवा रयणप्पभाए य सकरप्पभाए य होज्जा अहवा रयणप्पभाए य वालुयप्पभाए य होज्जा जाव अहवा रयणप्पभाए य अहेसत्तमाए होज्जा अहवा रयणप्पभाए य सकरप्पभाए य वालुयप्पभाए य होज्जा एवं जाव अहवा 5496555555 For Private and Personal Use Only