________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्राप्ति 9 शतके उद्देश // 793 // I793 // AAAAAAAAL एगे अहेसत्तमाए होजा अहवा एगे रयण एगे सकर. जाव एगे तमाए होजा 1 अहवा एगे रयण जाव एगे धूम. एगे अहेसत्तमाए होजा 2 अहवा एगे रयण जाव एगे पंक० एगे तमाए एगे अहेसत्तमाए | सर्वमीलने 924 भङ्गाः / एक०७ विकसंयोगा: 10 होज्जा 3 अहवा एगे रयण जाव एगे वालुय० एगे धूम. जाव एगेअहेसत्तमाए होजा 4] त्रिकसंयोगाः 305 अहवा एगे रयण० एगे सकर० एगे पंक० जाव एगे अहेसत्तमाए होजा 5 अहवा एगे रय- चतुष्कसंयोगाः 350 पंचकसंयोगाः 105 ण. एगे वालय जाब एगे अहेसत्तमाए होजा 6 अहवा एगे सकरप्पभाए एगे वालय | पटकसयोगाः प्पभाए जाव एगे अहेसत्तमाए होजा 7 // [प्र०] हे भगवन् ! छ नैरयिको नैरयिकप्रवेशनकवडे प्रवेश करता शुं रत्नप्रभामां होय ?-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गांगेय ! तेओ 1 रत्नप्रभामां पण होय. 7 यावत् अधःसप्तम पृथिवीमां पण होय. (एक संयोगी सात विकल्प थया.)१ अथवा एक रत्नप्रभामां अने पांच शर्कराप्रभामां होय. 2 अथवा एक रत्नप्रभामां अने पांच वालुकाप्रभामां पण होय. यावत् 6 अथवा एक रत्नप्रभामां | अने पांच अधःसप्तम पृथिवीमां होय. 1 अथवा बे रत्नप्रभामां अने चार शर्कराप्रभामां होय. यावद् 6 अथवा बे रत्नप्रभामां अने चार अधःमप्तम पृथिवीमा होय. 1 अथवा त्रण रत्नप्रभामां अने त्रण शर्कराप्रभामा होय. ए प्रमाणे ए क्रमवडे जेम पांच नरयिकोनो द्विकसंयोग कह्यो तेम छ नैरयिकोनो पण कहेवो. परन्तु अहीं एक अधिक गणवो . यावत् 105 अथवा पांच तमामां अने एक अधःसप्तम नरकमां होय. 1 एक रत्नप्रभामां एक शर्कराप्रभामां अने चार वालुकाप्रभामां होय. 2 अथवा एक रत्नप्रभामां एक शर्कराप्रभामां अने चार पंकप्रभामा होय. ए प्रमाणे यावत् 5 अथवा एक रत्नप्रभामां एक शर्कराप्रभामां अने चार अधःसप्तम पृथिवीमां HALCCCCCCCC For Private and Personal Use Only