________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 9 शतके व्याख्याप्रवाप्तिः // 794 // उद्देशा // 794 // CAMERICANADALA होय. 1 अथवा एक रत्नप्रभामां वे शर्कराप्रभामां अने त्रण वालुकाप्रभामां होय. ए प्रमाणे ए क्रमथी जेम पांच नैरयिकोनो त्रिकसंयोग कयो तेम छ नैरयिकोनो पण त्रिकसंयोग कहेवो. परन्तु विशेष ए के के तेमा एक नैरयिक अधिक कहेवो, अने बाकी बधुं पूर्ववत् जाणवू. ते प्रमाणे छ नारकोनो चतुःसंयोग अने पंचसंयोग पण जाणवो. परन्तु तेमां एक नैरयिक अधिक गणवो. यावत केल्लो भंगअथवा बे वालुकाप्रभामां एक पंकप्रभामां एक धूमप्रभामा एक तमःप्रभामां अने एक तमातमःप्रभामा होय. 1 अथवा एक रत्नप्रभामां एक शकराप्रभामां यावत् एक तमामां होय, 2 अथवा एक रत्नप्रभामां यावत् एक धूमप्रभामां अने एक अधःसप्तम नरकमां होय. 3 अथवा एक रत्नप्रभामां यावत् एक पंकप्रभामां एक तमामां अने एक अधःसप्तममां होय. 4 अथवा एक रत्नप्रभामां यावत् एक | वालुकाप्रभामां एक धूमप्रभामां यावत एक अधःसप्तम नरकमां होय. 5 अथवा एक रत्नप्रभामा एक शर्कराप्रभामां एक पंकप्रभामा | यावत् एक अधःसप्तम नरकमां होय, 6 अथवा एक रत्नप्रभामां एक वालुकाप्रभामां यावत एक अधःसप्तम नरकमां होय, 7 अथवा एक शकराप्रभामा एक बालकाप्रभामां यावत् एक अधःसप्तम नरकमा होय. हासप्तप्रवेशे संयोगाः / सत्त भंते ! नेरइया नेरइयपवेसणएणं पविसमाणा पुच्छा, गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा एक. 7 भङ्गाः जाव अहेसत्तमाए वा होजा 7, अहवाएगेरयणप्पभाए छ सक्करप्पभाए होजा एवं एएणं कमेणं द्विकसयोगाः 126 | जहा छण्हं दुयासंजोगो तहा सत्तण्हवि भाणियव्वं नवरं एगो अभहिओ संचारिजइ, सेसंतं चेव, तियासंजोगो चउक्कसंजोगो पंचसंजोगो छक्कसंजोगो य छण्हं जहा तहा सत्तण्हवि भापंचकसंयोगाः 315 पटकसंयोगाः 42 |णियव्वं, नवरं एकेको अन्भहिओसंचारेयव्योजाव छक्कगसंजोगो अहवा दो सक्कर०एगे वालुय० सप्तकसंयोगः१ 'जाव एगे अहेसत्तमाए होजा अहवा एगे रयण• एगे सक्कर० जाव एगे अहेसत्तमाए होजा // For Private and Personal Use Only