SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्याप्राप्ति // 787 // 9 शतके उद्देशा // 787 // शर्कराप्रभामां अने एक अधःसप्तम पृथिवीमा होय. ए प्रमाणे (वालुकाप्रभा वगेरे) एक एक पृथिवीनी साथे योग करवो. यावत् WIअथवा चार तमामां अने एक अधःसप्तम पृथिवीमां होय. अथवा एक रत्नप्रभामां एक शर्कराप्रभामा अने त्रण वालुकाप्रभामा होय. ए प्रमाणे यावत् 5 अथवा एक रत्नप्रभामां एक शर्कराप्रभामां अने त्रण अधःसप्तम पृथिवीमा होय. (ए प्रमाणे 'एक एक ने त्रण' विकल्पने आश्रयी पांच भांगा थया.) एवं जाव अहवा एगे रयण. एगे सकर० तिन्नि अहेसत्तमाए होज्जा अहवा एगे रयण दो सक्कर दो वालुयप्पभाए होज्जा एवं जाव अहवा एगे रयण दो सक्कर दो अहेसत्तमाए होज्जा अहवा दो रयणप्पभाए द्रा एगेसकरप्पभाए दो वालुयप्पभाए होज्जा एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए |एवं पंच गे एगेसकरप्पभा| ए दो अहेसत्तमाए होज्जा अहवा एगे रयण तिन्नि सक्कर० एगे वालुयप्पभाए होज्जा एवं जाव अहवा एगे रयण तिन्नि सक्कर० एगे अहसेत्तमाए होज्जा अहवा 4 / दो रयण दो सक्कर० एगे वालुयप्पभाए होज्जा एवं जाव अहेसत्त-|२३| माए अहवा |तिन्नि रयण. एगे सकर० एगे वालुयप्पभाए होज्जा एवं जाव अहवा एगे सक्कर०एगे अहेसत्तमाए होना अहवाएगे रयण एगे वालुय तिन्नि पंकप्पभाए होजा, एवं पएणं कमेणं जहा चउण्हं तियासंजोगो भणितो तहा पंचण्हवि तियासंजोगो भाणियब्वो, नवरं तत्थ एगो संचारिजइ, +GARCANA र सा भागाः 84 24 रवप्रभा 20 शर्कराप्रभा 16 वालुकाप्रभा 12 पंकप्रभा 14 // 8 धूमप्रभा तिन्नि रयण. For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy