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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥७१२॥ ८ शतके उद्देशः ९ ॥७१२॥ EGISTRICANASI ए प्रमाणे यावत् नीचे सातमी नरकपृथ्वी पर्यन्त जाणवू. परन्तु विशेष ए छे के जघन्यथी सर्वबन्धनुं अन्तर जे नारकनी जेटली | जघन्य स्थिति होय तेटली स्थिति अन्तर्मुहूर्त अधिक जाणवी. बाकीर्नु पूर्वनी पेठे जाणवू. पंचेन्द्रिय तियंचयोनिक अने मनुष्योने सर्वबन्धन अन्तर वायुकायिकनी पेठे जाणवू. जेम रत्नप्रभाना नैरविकोने कछु तेम अमुरकुमार, नागकुमार, यावत् सहस्रार देवाने | पण जाणवु', परन्तु विशेष ए छे के तेना सर्वबन्ध अन्तर जेनी जे जघन्य स्थिति होय तेने अन्तर्मुहुर्त अधिक करवी बाकी सर्व | पूर्वे कह्या प्रमाणे जाणवू. जीवस्स णं भंते ! आणयदेवत्ते नोआणय० पुच्छा, गोयमा! सबबंधंतरं जहन्नेणं अट्ठारस सागरोवमा वासपुहुत्तमम्भहियाई उक्कोसेणं अणतं कालं वणस्मइकालो, देसबंधतरं जहन्नेणं वासपुहुत्तं उक्कोसेणं अणतं कालं वणस्सइकालो, एवं जाव अच्चुए, नवरं जस्स जा जहलिया ठिती सा सव्वबंधतरं जह• वासपुहुत्तमम्भहिया कायब्वा, सेसंतं चेव। गेवेजकप्पातीयपुच्छा, गोयमा! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं बावीस सागरोवमाई वासपुहुत्तमम्भहियाई उक्कोसेणं अणतं कालं वणस्सइकालो, देसबंधंतरंजहन्नेणं वासपुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। जीवस्सणं भंते! अणुत्तरोववातियपुच्छा, गोयमा! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं एकतीसं सागरोवमाई वासपुहुत्तमन्भहियाई उकोसेणं संखेन्जाई सागरोवमाई, देसबंधंतरं जहन्नेणं वासपुहुत्तं उकोसेण संखेजाइं सागरोवमाई। एएसि णं भंते ! जीवाणं वेउब्बियसरीरस्स देसघंधगाणं सब्वबंधगाणं अबंधगाण य कयरे २हिंतो जाव विसेसाहिया वा ?, गोयमा! सब्वथोवा जीवा वेउम्बियसरीरस्स सव्वबंधगा देसंबंधगा असंखेजगुणा अबंधगा अणंतगुणा ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020108
Book TitleBhagvati Sutram Part 03
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1938
Total Pages212
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size12 MB
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