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व्याख्याप्राप्तिः ॥७११॥
८ शतके उद्देशः ॥७११॥
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जा जस्म ठिती जहनिया सा सव्वबंधंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तमभहिया कायवा, सेसं तं चेव, पंचिंदियतिरिक्खजोणियमणुस्साण य जहा वाउकाइयाणं । असुरकुमारनागकुमार जाव सहस्सारदेवाण एएसि जहा रयणप्पभापुढविनेरइयाणं नवरं सब्वबंधंतरे जस्स जा ठिती जहन्निया सा अंतोमुत्तमभहिया कायब्बा , सेसं तं चेव ।।
[प्र०] वायुकायिकना वैक्रियशरीरप्रयोगबन्धना अन्तर संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! सर्वबन्धनुं अन्तर जघन्यथी अन्तर्मुहूर्त, I' | अने उत्कृष्टथी पल्योपमनो असंख्यातमोभाग. ए प्रमाणे देशचन्ध अन्तर पण जाणवू [प्र०] तिर्यंचयोनिक पंचेद्रियना वैक्रियशरीरना है प्रयोगबन्धना अन्तर संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! सर्वबन्धनुं अन्तर जघन्यथी अन्तर्मुहूर्त, अने उत्कृष्टथी पूर्वकोटिपृथक्त्व (बेथी
नव पूर्नकोटी) सुधो होय छे. ए प्रमाणे देशबन्धनुं अन्तर पण जाणवू. ए रीते मनुष्यने पण जाणवू [प्र०] हे भगवन ! कोइ जीव वायु कायिकपणामां होय अने [मरीने] वायुकाय सिवाय बीजा जीवोमां आवीने उपजे, अने ते पुनः वायुकायपणामां आवे ते वायुकायिक एकेन्द्रिय बैक्रियशरीरप्रयोगबन्धना अन्तर संबन्धे प्रश्न. [२०] हे गौतम ! तेना सर्वबन्धनुं अन्तर जघन्यथी अन्तर्मुहूर्त, अने उत्कृष्टथी अनन्तकाल-वनस्पति काल होय. ए प्रमाणे देशबन्धनुं पण अन्तर जाणवू [प्र०] हे भगवन् ! कोइ जीव रत्नप्रभापृथिवीमां | नारकपणे उत्पन्न थाय अने पछी रत्नप्रभापृथिवी शिवायना जीवोमां जाय, अने पुनः रत्नप्रभा नरकमां आवे ते रत्नप्रभानरयिकना | वैक्रियशरीरप्रयोगबन्धना अन्तर संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ? सर्वबन्धनुं अन्तर जघन्यथी अंतर्मुहूर्त अधिक दश हजार वर्ष, अने उत्कृष्ठथी वनस्पतिकालपर्यन्त होय. तथा देशबन्धनुं अन्तर जघन्यथी अंतर्मुहूर्त, अने उत्कृष्टयी अनन्तकाल-वनस्पतिकाल सुधी होय.
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