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व्याख्या
प्रज्ञतिः
॥ ६९४॥
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देशिक अने अनंतमदेशिक परमाणु पुद्गलस्कंधोनो विषम स्निग्धता (चिकाश ) वडे, विषम रूक्षतावडे अने विषम स्निग्ध- रूक्षता वडे बन्धप्रत्ययिक बन्ध थाय छे. ते जयन्यथी एक समय, अने उत्कृष्टथी असंख्य काल सुधी रहे छे. ए प्रमाणे बंधनप्रत्ययिक बन्ध कह्यो. [प्र० ] हे भगवन ! भाजनप्रत्ययिक बन्ध केवा प्रकारे होय ? [30] जूनी मदिरानो, जूना गोळनो अने जुना चोखानो भाजन प्रत्ययिक बन्ध थाय छे. ते जधन्यथी अन्तर्मुहूर्त अने उत्कृष्ट संख्यात काल सुधी रहे छे. ए प्रमाणे भाजनप्रत्ययिक बन्ध कह्यो. [प्र० ] हे भगवन् ! परिणामप्रत्ययिक बन्ध केवा प्रकारे छे ? [अ०] वादळाओनो, अभ्रवृक्षोनो जेम तृतीय शतकमां कथं छे तेम यावद् अमोघोनो परिणामप्रत्ययिकबन्ध, उत्पन्न थाय छे. ते जघन्यथी एक समय अने उत्कृष्टथी छ मास सुधी रहेछे, ए प्रमाणे परिणामप्रत्ययिकबन्ध, सादिविस्रसाबन्ध अनेविससाबन्ध को. ।। ३४५ ।।
से किं तं पयोगबंधे ?, पयोगबंधे तिविहे पण्णत्ते, तंजहा अणाइए वा अपज्जवसिए साइए वा अपज्जबसिए साइए वा मपज्जवसिए, तत्थ णं जे से अणाइए अपज्जबसिए से णं अट्ठण्हं जीवमज्झपएसाणं ॥ तत्थवि णं तिन्हं २ अणाइए अपज्जवसिए, संसाणं साइए, तत्थ णं जे से सादीए अजबसिए से णं सिद्धाणं, तत्थ णं जे से साइए सपज्जबसिए से णं चउबिहे पन्नत्ते, तंजहा- आलावणबंधे अल्लियावणबंधे सरीरबंधे सरीरप्पयोगबंधे ॥ से किं तं आलावणबंधे ?, आलावणबंधे जण्णं तणभाराण वा कट्टभाराण वा पत्तभाराण वा पलालभाराण वा वेल्लभाराण वा वेत्तलयाबागवरत्तरज्जुवल्लिकुसदन्भमादिएहिं आलावणबंधे समुप्पज्जइ जहनेणं अंतोमुहुत्तं उकोसेणं संखेज कालं, सेत्त आलावणबंधे से किं तं अल्लियावणबंधे ?, अल्लियावणबंधे चउब्विहे पन्नत्ते, तंजहा
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८ शतके उद्देशः ९
॥ ६९४॥