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व्याख्याप्रज्ञप्ति
॥५३५॥
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[उ.] हे गौतम ! भोगो त्रण प्रकारना कह्या छे; ने आ प्रमाणे-गंध, रस अने स्पर्श. [प्र०] हे भगवन् ! काम-भोग केटला प्रकारे कह्या है ? [उ०] हे गौतम ! काम अने भोग (बन्ने मळी) पांच प्रकारना कह्या छ, ने आ प्रमाणे-शब्द, रूप, रस, गंध अने स्पर्श. P७ शतके
जीवा णं भंते ! किं कामी भोगी?, गोयमा! जीवा कामीवि भोगीवि, से केणट्टेणं भंते ! एवं उद्देशः ७ | बुच्चइ जीवा कामीवि भोगीवि ?, गोयमा ! सोइंदियचविखदियाई पडच कामी, घाणिंदियजिभिदियफासिंदियाई पडुच्च भोगी, से तेगडेणं गोयमा! जाव भोगीवि । नेरइया णं भते ! किं कामी भोगी!, एवं चेव, एवं जाव धणियकुमारा । पुढ विकाइयाणे पुच्छा, गोयमा! पुढविकाइया नो कामी, भोगी, से केगडेगं जाव भोगी?, गोयमा ! फामिंदियं पडुच्च, से तेणटेणं जाव भोगी, एवं जाव वणस्मइकाइया. बेइंदिया एवं चेव, नवरं जिनिभदियफामिंदियाई पडुच्च भोगी, इंदियावि एवं चेव, नवरं घाणिदियजिभिदियफासिंदियाई पडुच्च भोगी, चउरिदियाणं पुच्छा, गोयमा ! च गरिदिया कामी वि भोगीवि, से केण?णं जाव भोगीवि ?, गोयमा ! चक्खिदि पडुच कामी, घाणिदियजिभिदियफासिंदियाई पटुच्च भोगी. से तेणटेणं जाव भोगीवि, अवसेसा जहा जीया जाव वेमाणिया ॥ एमि णं भंते ! जीवाणं कामभोगीणं नोकामीनोभोगाणं भोगीण य कयरे कपरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा ?, गोयमा! सब्बत्योवा जीवा कामभोगी, नोकामीनोभोगी अणतगुणा, भोगी अणंतगुणा ॥ (सूत्रं २८९)॥
(प्र०] हे भगवन् ! शुं जीवो कामी के भोगी छे ? [उ.] हे गौतम ! जीवो कामी पण , अने भोगी पगडे. [प्र०] हे
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