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७ शतके उद्देशः ७ ॥५३६॥
भगवन् ! शा हेतुथी एम कहो छो के जीवो कामी पण छे अने भोगी पण छे ? [उ०] हे गौतम! श्रोत्रंद्रिय अने चक्षुने आश्रयी व्याख्या
जीवो कामी कहेवाय ले, तेम घाणेन्द्रिय, जिह्वन्द्रिय अने स्पर्शेन्दियनी अपेक्षाए जीवो भोगी कहेवाय छे; ते हेतुथी हे गौतम ! प्रज्ञप्तिः | जीवो यावत् भोगी पण छे. [प्र.] हे भगवन् ! शुं नारको कामी छे के भोगी छे ? [उ०] पूर्वे कद्या प्रमाणे जाणवू, ए प्रमाणे ॥५३६॥ स्तनितकुमारोने जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! पृथिवीकायिकनो प्रश्न. [उ.] हे गौतम ! पृथिवीकायिको कामी नी, पण भोगी छे.
[[प्र०] हे भगवन् ! शा हेतुथी एम कहो छो के पृथिवीकायिको भोगी छे ? हे गौतम ! स्पर्शेन्द्रियने आश्रयी; ते हेतुथी तेओ यावत्
भोगी हे. ए प्रमाणे यावत् वनस्पतिकायिको जाणवा, बेइन्द्रिय जीवो ए प्रमाणे जाणवा, परन्तु तेओ जिहा अने स्पर्शेन्द्रियनी अपेलक्षाए भोगी है. तेइन्द्रिय जीवो पण ए प्रमाणे जाणवा, पण घाण, जिल्हा अने स्पर्शेन्द्रियनी अपेक्षाए तेओ भोगी छे. [प्र०] चउ
रिन्द्रिय जीवोनो प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! चउरिन्द्रिय जीवो कामी पण छे अने भोगी पण छे. [प्र०] हे भगवन् ! शा हेतुथी यावत् भोगी पण छे ? [उ०] ते चउरिन्द्रिय जीवो चक्षुनी अपेक्षाए कामी; घाण, जिला अने स्पर्शन्द्रियनी अपेक्षाए भोगी छे; ते हेतुथी | यावत् भोगी समजवा. बाकीना यावत् वैमानिक सुधीना जीवो जेम सामान्य जीवो कह्या तेम जाणवा. [प्र०] हे भगवन् ! कामभोगी, नोकामी नोभोगी अने भोगी जीवोमां कया जीवो कया जीवोथी यावत् विशेषाधिक छे? [उ०] हे गौतम! कामभोगी जीवी सौथी थोडा छ, नोकामी नोभोगी जीवो अनन्तगुण छे, अने भोगी जीवो अनन्तगुण छे. ॥ २८९ ॥
छउमत्थे ण भंते ! मणूसे जे भविए अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववजित्तए, से नूर्ण भंते ! से खीणभोगी नो पभू उहाणेणं कम्मेणं बलेणं वीरिएणं पुरिसक्कारपरक्कमेणं विउलाई भोगभोगाई
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