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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥५३४ ॥
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भंते! भोगा अरूवी भोगा?, गोयमा! रुवी भोगा, नो अरूवी भोगा, सचित्ता भंते ! भोगा अचित्ता भोगा ?, गोयमा ! सचित्तावि भोगा, अचित्तावि भोगा, जीवा णं भंते! भोगा० ? पुच्छा, गोयमा ! जीवावि भोगा, अजीवावि भोगा, जीवाणं भंते । भोगा अजीवाणं भोगा ?, गोयमा ! जीवाणं भोगा, जो अजीवाणं भोगा, कतिविहा णं भंते ! भोगा पन्नत्ता ?, गोयमा ! तिविहा भोगा पन्नत्ता, तंजहा--गंधा रसा फासा । कतिविहा र्ण भंते! कामभोगा पन्नता ? गोयमा ! पंचविहा कामभोगा पन्नत्ता, तंजहा--सदा रूवा गंधा रसा फासा ।
[प्र० ] हे भगवन् ! कामो रूपी छे के अरूपी छे ? [अ०] हे गौतम! कामो रूपी ले, पण हे आयुषमान् श्रमण ! कामो अरूपी नथी. [प्र० ] हे भगवन् ! कामो सचित छे के अचित्त छे ? [उ०] हे गौतम! कामो सचित पण छे अने अचित्त पण हे. [प्र० ] हे भगवन् ! कामो जीव छे के अजीव छे ? [उ०] हे गौतम! कामो जीव पण छे अने अजीव पण छे. [प्र० ] हे भगवन् ! कामो जीवोने होप के अजीबोने होय छे ? [अ०] हे गौतम! कामो जीवोने होय छे, पण अजीवोने कामो होता नथी. [प्र० ] हे भगवन् ! कामो केटला प्रकारे का छे ? [उ० ] हे गौतम ! कामो वे प्रकारे कथा छे, जेमके शब्दो अने रूपो. [प्र० ] हे भगवन ! भोगो रूपीछे के अरूपी हे ? [३०] हे गौतम! भोगो रूपी छे पण अरूपी नथी. [प्र० ] हे भगवन् ! भोगो सचित छे के अचित्त छे ? [उ०] हे गौतम! भोगो सचित पग छे अने अचित्त पण छे. [ प्र० ] हे भगवन् ! भोगो जीवस्वरूप छे के अजीवस्वरूप छे ? [उ०] हे गौतम! भोगो जीवस्वरूप पण छे अने अजीवस्वरूप पण छे. [प्र० ] हे भगवन् ! भोगो जीवोने होय के अजीवोने होप ? [30] हे गौतम! भोगो जीवोने होय छे, पण अजीवोने भोगो होता नथी. [प्र० ] हे भगवन् ! भोगो केटला प्रकारना कया है ?
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७ शतके उद्देशः ७ ।।५३४।।