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व्याख्याप्रज्ञप्तिः
॥५०८ ॥
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त्याख्याननी मनुष्यो संख्यातगुण छे, अने अप्रत्याख्यानी मनुष्यो असंख्यगुण छे. [प्र० ] हे भगवन् ! शुं जीवो सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी छे, देशमूलगुणप्रत्याख्यानी छे के अप्रत्याख्यानी छे ? [उ०] हे गौतम! जीवो सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी छे, देशमूलगुणप्रत्याख्यानी छे, अने अप्रत्याख्यानी पण छे. [प्र० ] नारकोनो प्रश्न. [उ०] हे गौतम! नारको सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी नथी, देशमूलगुणप्रत्याख्यानी नथी, पण अप्रत्याख्यानी छे. [प्र० ] पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवोनो प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! पंचेन्द्रियतिर्यंचो सर्वमूलगुणप्रत्यानी नथी, पण देशमूलगुणप्रत्याख्यानी छे अने अप्रत्याख्यानी छे, जेम जीवो कह्या तेम मनुष्यो जाणवा. जेम नारको कथा तेम वानमंतर, ज्योतिष्क अने वैमानिको जाणवा.
एसि णं भंते! जीवाणं सव्वमूलगुणपच्चक्खाणीणं देसमूलगुणपच्चक्खाणीणं अपञ्चक्खाणीण य कयरे२ हिंतो जाव विसेसाहिया वा?, गोपमा! सव्वत्थोवा जीवा सव्वमूलगुणपचक्खाणी, देसमूलगुणपञ्चक्खाणी असंखेज्जगुणा, अपञ्चक्खाणी अनंतगुणा एवं अप्पाबहुगाणि तिन्निवि जहा पढमिल्लए दंडए, नवरं सव्वत्थोवा पंचिंदियतिरिक्खजोणिया | देसमूलगुणपञ्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी असंखेज्जगुणा । जीवा णं भंते ! किं सव्युत्तरगुणपचक्खाणी देसुत्तरगुणपञ्चक्खाणी अपञ्चक्खाणी ?, गोयमा ! जीवा सव्युत्तरगुणपञ्चक्खाणीवि तिन्निवि, पंचिंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा य एवं चेव, सेसा अपचक्खाणी जाव बेमाणिया । एएसि णं भंते! जीवाणं सव्युत्तरगुणपचक्खाणी अप्पा बहुगाणि तिन्निवि जहा पढमे दंडए जाव मणूसाणं ॥ जीवा णं भंते! किं संजया असंजया संजयासंजया ?, गोयमा ! जीवा संजयावि असंजयावि संजयासंजयावि तिन्निवि, एवं जहेब पन्नवणाए तहेव भाणि
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७ शतके
उद्देशः २ ||५०८ ॥