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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥५०९ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir si, जाव वैमाणिया, अप्पाबहुतहेब तिन्हवि भाणियच्वं ॥ जीवा णं तं । किं पञ्चवाणी अपचवाणी पञ्चवाणापचक्खाणी?, गोवमा! जीवा पच्चत्रवाणीव एवं निन्निवि, एवं मणुस्साणवि तिन्निवि, पंचिदियतिरिक्खजोणिया आइल्लविरहिया, सेसा सब्वे अपचक्खाणी जाव वैमाणिया । [A] हे भगवन् ! सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी, देशकलगुणप्रत्याख्यानी अने अप्रत्याख्यानी जीवोमां कोण कोनाथी यात्रत् विशेपाधिक छे ? [उ०] हे गौतम! स मिल गुणवत्याख्यानी जीवो सर्ववी थोडा हे देशमलवणवत्याख्यानी जीवो असंख्यगुण छे, अने अप्रत्याख्यानी अनंतगुण छे. ए प्रमाणे त्रणे (जीव, पंचेन्द्रिय तिर्यंच अने मनुष्यना) अलबहु वो प्रथम दंडकमा (सू० ११, १२, १३) का प्रमाणे जाणवा, परंतु सर्वथी थोडा पंचेन्द्रिय तिर्यंचो देश मूलगुणप्रत्याख्यानी ले, अने अप्रत्याख्यानी पंचेन्द्रिय तिर्यंचो असंख्यगुण है. [प्र० ] हे भगवन् ! शुं जीवो सर्वोत्तरगुणप्रत्याख्यानी हे देशोत्तरगुणप्रत्याख्यानी है, के अपत्याख्यानी ले ? [अ०] हे गौतम! जीवो सर्वोत्तरगुणप्रत्याख्यानी विगेरे वगे प्रकारना छे. पंचेन्द्रिय तिर्यचो अने मनुष्यो ए प्रमाणे हे. बाकीना वैमानिक सुधीना जीवो अप्रत्याख्यानी हे [प्र० ] हे भगवन् ! सर्वोत्तरगुणप्रत्याख्यानी, देशोत्तरगुणप्रत्याख्यानी अने अप्रत्याख्यानी जीवोमां कोण को नाथी यावत् विशेषाधिक के ? [उ० ] त्रणे अल्पबहुचो प्रथम दंडकां कह्या प्रमाणे यावत् मनुष्यो जाणवा. [प्र० ] हे भगवन्द ! शुं जीवो संयत छे, असंगत ले के संयतासंयत (देश संयत) छे ? [अ०] हे गौतम! जीरो संयत पण हे असंयत पण है, अने संयतासंयत पण ए त्रणे प्रकारना है. ए प्रमाणे जेम पकवणामां कां हे ते प्रमाणे यावत् वैमनिकोने अहीं कहे तेम अल्पबहुत्व पण त्रणेनुं कहें. [प्र० ] हे भगवन् ! शुं जीवो प्रत्याख्यानी हे अप्र याख्यानी छे, के प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी (देश For Private and Personal Use Only ७ शतके उद्देशः २ ॥५०९ ॥
SR No.020107
Book TitleBhagvati Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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