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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥५०५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पन्नत्ते ?, गोयमा ! दसविहे पन्नत्ते, तंजहा अणागय १ महकतं २ कोडीसहियं ३ नियंटिय ४ चेव । सागार ५ मणागारं ६ परिमाणकडे ७ निरवसेसं ८ ॥ ५४ ॥ साकेयं ९ चेव अद्धाए १० पञ्चक्खाणं भवे दसहा । देसुत्तरगुणपञ्चवाणे णं भंते ! कहविहे पन्नत्ते ?, गोयमा ! सत्तविहे पन्नत्ते, तंजहा- दिसिव्वयं १ उपभोगपभोगपरिमाणं २ अनत्यदंडवेरमणं ३ सामाइयं ४ देसावगासियं ५ पोसहोववासो ६ अतिहिसंविभागो ७ अपच्छिममारणंतियसंलेहणासणारा हणता (सूत्रं २७१) ॥ [प्र० ] हे भगवन् ! केटला प्रकारे पच्चक्खाण कछु छे ? [अ०] हे गौतम! वे प्रकारे पच्चक्खाण कछु छे. ते आ प्रकारे-मूलगुणपच्चक्खाण अने उत्तरगुणपचक्खाण. [प्र० ] हे भगवन्! मूलगुणपच्चक्खाण केटला प्रकारनुं कछु छे ? [अ०] हे गौतम! मूलगुण प्रत्याख्यान वे प्रकारनुं क ुं छे, ते आ प्रकारे सर्वमूलगुणप्रत्याख्यान अने देशमूलगुणप्रत्याख्यान. [प्र० ] हे भगवन् ! सर्वमूलगुण प्रत्याख्यान केटला प्रकारे कथं छे ? [अ०] हे गौतम! सर्वमूलगुण प्रत्याख्यान पांच प्रकारे कछु छे; ते आ प्रमाणे- सर्व प्राणातिपातथी विराम पामवो, यावत् सर्व मृषावादथी विराम पामवो. [प्र० ] हे भगवन् ! देशमूलगुणप्रत्याख्यान केटला प्रकारे कछु छे ? [अ०] हे गौतम! देश मूलगुणप्रत्याख्यान पांच प्रकारे कछु छे; ते आ प्रमाणे- स्थूलप्राणातिपातथी विरमण यावत् स्थूलमृपावादथी विरमण. [प्र० ] हे भगवन् ! उत्तरगुणप्रत्याख्यान केटला प्रकारेकां छे? [30] हे गौतम ! उत्तरगुणप्रत्याख्यान वे प्रकारे कछु छे; ते आ प्रमाणे- सर्वोत्तरगुणप्रत्याख्यान अने देशोत्तरगुणप्रत्याख्यान. [ प्र० ] हे भगवन् ! सर्वोत्तरगुणप्रत्याख्यान केटला प्रकारे का छे? [उ०] हे गौतम! सर्वोत्तरगुणप्रत्याख्यान दश प्रकारे कछु ले; ते आ प्रमाणे- १ अनागत, २ अतिक्रान्त, ३ कोटिसहित ४ For Private and Personal Use Only ७ शतके उद्देशः २ ।।५०५ ॥
SR No.020107
Book TitleBhagvati Sutram Part 02
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1937
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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