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व्याख्या
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॥ अथ सप्तम शतकम् ॥
उद्देशक १.
प्रज्ञप्ति
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७ शतके उद्देशः१ ॥४८९॥
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॥४८९॥
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आहार १ विरति २ थावर ३ जीवा ४ पक्खी ५ य आउ ६ अणगारे ।
छउमत्थ ८ असंवुड ९ अन्नउत्थि १० दस सत्तमंमि सए ॥ ५३॥ १ आहार, २ विरति, ३ स्थावर, ४ जीव, ५ पक्षी, ६ आयुष्, ७ अनगार, ८ छमस्थ, ९ असंवृत, अने १० अन्यतीथिक ए संबन्धे सातमा शतकमा दश उद्देशको छे.
तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव एवं वदासी-जीवे गं भंते ! कं समयमणाहारए भवइ ?, गोयमा ! पढमे | समए सिय आहारए सिय अणाहारए बितिए समए सिय आहारए सिय अणाहारए ततिए समए सिय
आहारए सिय अणाहारए, चउत्थे समए नियमा आहारए, एवं दंडओ, जीवा य एगिदिया य चउत्थे समए, सेसा ततिए समए । जीवे ण भंते ! के समयं सव्वप्पाहारए भवति?, गोयमा! पढमसमयोववन्नए वा चरमसमए भवत्थे वा एत्थ ण जीवे ण सव्वप्पाहारए भवइ, दंडओ भाणियव्वो जाव वेमाणियाणं ॥ (मत्र २५९)।
[प्र०] ते काले ते समये (गौतम इन्द्रभूति) अनगार ए प्रमाणे बोल्या हे भगवन् ! जीव (परभवमा जता) कये समये अनाहारक (आहार नहि करनार) होय ? [उ.] हे गौतम ! (परभवमा) प्रथम समये जीव कदाच आहारक होय अने कदाच अनाहारक
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